जल प्रबंधन को लेकर सरकारें गंभीर नहीं हैं। असल में वे अपने राजनीतिक हित चिंतन में ही लगी रहती हैं तथा जल संचयन-प्रबंधन जैसे मामलों पर ध्यान ही नहीं देतीं। ऐसे मामलों में उनके प्रयास सतही होते हैं।
— भगवती प्रसाद गेहलोत, मंदसौर, मप्र
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भारत में मानसून से होने वाली वर्षा का यदि समुचित उपयोग किया जाए तो जल संकट से निजात पाई जा सकती है। इसके सही योजना बनाने की जरुरत है। कई देश ऐसे है जहां बहुत कम बारिश होती है, पर वे वर्षाजल की एक-एक बूंद सहेज लेते हैं और जल संकट से बचे रहते हैं।
—संजय डागा, हातोद
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जल प्रबंधन के मामले में सरकारें गंभीर नहीं हैं। जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक घर में नल से जल की योजना पिछड़ चुकी है। योजनाओं का सही क्रियान्वयन नही होता है।
—राजन गेदर, सूरतगढ़ गंगानगर
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तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, इतनी गंभीर चेतावनी के बाद भी सरकारें इसे समझ नहीं रही हैं। लोग पानी के लिए परेशान हैं। यह सब प्रशासनिक व्यवस्था की लापरवाही है। स्थानीय निकायों को नालों की सफाई करने और वर्षा जल को संरक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए।
—लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़
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सरकार को मुख्यतया भूजल प्रबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं। वर्षाकाल के समय ही भूजल स्तर में बढ़ोतरी होती हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में भूजल स्तर में अत्यंत गिरावट दर्ज हुई है। इसलिए जल नीति में परिवर्तन कर सरकारें भूजल दोहन पर अंकुश लगा सकती हैं। भूजल के अत्यधिक दोहन को रोक जा जाना चाहिए।
—मनु प्रताप सिंह,चींचडौली,खेतड़ी
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जल प्रबंन को लेकर सरकारें गंभीर नहीं होने का प्रमुख कारण बढ़ता भ्रष्टाचार है। नेताओं और अफसरों की गलत नीतियों और बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण जल प्रबंधन से सम्बंधित योजनाओं का धरातल पर सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहती हैं।
—प्रकाश भगत, कुचामन सिटी, नागौर
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जल प्रबंधन पर ध्यान नहीं देने के कारण समस्या बढ़ रही है। असल में नीतियों की कमी नहीं है, नीयत में खोट है। योजनाएं राजनीतिक दबाब एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। नीतियों को धरातल पर उतारने पर जोर देना होगा।
—जयपाल जैन, हनुमानगढ़