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वैश्विक असमानता से लड़ने को उच्च कर की पैरवी

ब्राजील की अध्यक्षता में जी-20: सम्पत्ति की असमानता के मुद्दे पर वैश्विक मंच पर रुख स्पष्ट करने का समय

जयपुरJul 19, 2024 / 06:54 pm

Nitin Kumar

जगदीश रत्तनानी

पत्रकार व संकाय सदस्य, एसपीजेआइएमआर

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पिछले वर्ष दिसम्बर में भारत से जी-20 की अध्यक्षता संभालने के बाद ब्राजील ने कुछ महीनों के भीतर ही सम्पत्ति की असमानता पर तीव्र गति से फोकस किया है और जी-20 के एजेंडे को व्यापक बनाने के प्रति दृढ़ता दिखाई है। ब्राजील के नेतृत्व में कई अन्य देशों विशेषकर फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और स्पेन के साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा समर्थित धन असमानता के एजेंडे ने गति पकड़ी है और इस विषय को नजरअंदाज करना भारत के लिए मुश्किल है। 10 जुलाई को ही 19 पूर्व राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने जी-20 नेताओं को एक खुला पत्र लिखकर ब्राजील के प्रस्ताव – ‘दुनिया के अत्यधिक-अमीर लोगों पर कर’ – के लिए नए वैश्विक समझौते पर समर्थन का आग्रह भी किया।
हस्ताक्षरकर्ताओं में कोस्टा रिका, चिली, नीदरलैंड्स, लातविया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, लिथुआनिया, ऑस्ट्रिया, कोरिया, पोलैंड, बेल्जियम, स्वीडन, ग्रीस, स्पेन, स्लोवेनिया और फ्रांस के पूर्व प्रमुख शामिल हैं। इन नेताओं ने लिखा है – ‘हम, पूर्व नेताओं के रूप में, जब कोई दुर्लभ रणनीतिक मौका या सुयोग देखते हैं तो उसे पहचानते हैं। कर (टैक्स) सभ्य, मेहनती और समृद्ध समाज की आधारशिला होते हैं। फिर भी हमारा यह समय ऐसा है जिसमें शिक्षकों और सफाईकर्मियों की तुलना में दुनिया के अत्यधिक अमीर कम कर अदा करते हैं। वैश्विक स्तर पर अरबपति कर की जिस दर पर भुगतान कर रहे हैं वह उनकी संपत्ति के 0.5 प्रतिशत से भी कम है। खरबों डॉलर की जिस राशि का निवेश समुदायों, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में किया जा सकता था, वह भी उत्पादकता के साथ, उसे अत्यधिक-धनवानों ने अनुत्पादक रूप से इकट्ठा कर लिया है।’
कहा जा सकता है कि इस प्रस्ताव की शुरुआत नई दिल्ली में ही हुई थी, जब सितम्बर 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों ने ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा को यह कहते हुए सुना था – ‘अगर हम बदलाव लाना चाहते हैं तो हमें असमानताओं को कम करने वाले मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय एजेंडे के केंद्र में रखना होगा।’ राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने बाद में यह भी कहा था कि हमें मुद्दों को टालना बंद करना चाहिए और उन्हें संबोधित करना शुरू करना चाहिए। यह अब मानवीय रूप से संभव नहीं है कि एक ओर दुनिया में इतने समृद्ध लोग हों, अटलांटिक पार इतना पैसा बह रहा हो, और दूसरी ओर इसी दुनिया में इतने सारे लोग भूखे हों।’
इसे ‘ब्राजीलियन ट्विस्ट’ कहा गया है। ब्राजील द्वारा जी-20 की प्रेसीडेंसी संभालने के बमुश्किल चार महीने बाद, ब्राजील, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और स्पेन के वित्त मंत्रियों ने ब्रिटेन के गार्जियन अखबार में एक संयुक्त संपादकीय लिखा था जिसमें वैश्विक असमानता और जलवायु संकट से लडऩे की कुंजी के रूप में अति धनी लोगों पर उच्च कर लगाने का तर्क दिया गया था। वित्त मंत्रियों ने तर्क दिया था – ‘सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और राजकोषीय पुनर्वितरण की प्रभावशीलता में विश्वास बढ़ाने’ के एक कदम के रूप में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार अरबपतियों पर न्यूनतम 2 प्रतिशत संपत्ति कर लगाया जाए। साथ ही ‘स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और बुनियादी ढांचे जैसी सार्वजनिक वस्तुओं में निवेश के लिए जरूरी है कि सरकारें राजस्व उत्पन्न करें क्योंकि इन सार्वजनिक वस्तुओं से हर कोई लाभान्वित होता है।’
वैश्विक स्तर पर इस न्यूनतम 2 प्रतिशत कर को एक सहमत और समन्वित दृष्टिकोण के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि खामियों को दूर करने के साथ ही अत्यधिक अमीरों द्वारा कर से बचने की समस्या को खत्म किया जा सके। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गेब्रियल जुकमैन, जो इस प्रस्ताव के केंद्र में हैं, ने न्यूयार्क टाइम्स में लिखा है – उदार लोकतंत्रों में, राजनीतिक भावना की एक लहर आकार ले रही है, जो समाज को नष्ट करने वाली असमानता को जड़ से खत्म करने पर केंद्रित है। अत्यधिक अमीरों पर यह समन्वित न्यूनतम कर, पूंजीवाद के मिथक को तो ठीक नहीं करेगा, लेकिन सही दिशा में उठाया जाने वाला यह वह पहला कदम है जो अत्यधिक आवश्यक है।
यह पहला मौका है जब जी-20 समूह, 19 देशों के साथ अफ्रीकी यूनियन और यूरोपीय यूनियन का उपयोग – कोऑर्डिनेटेड वेल्थ टैक्स प्रपोजल – पर चर्चा को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। यह भी पहली बार है कि मुद्रा कोष अत्यधिक अमीरों पर कर लगाने के प्रस्तावों का समर्थन कर रहा है। मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि इससे टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए तत्काल आवश्यक धन जुटाया जा सकेगा। पिछले साल सितम्बर में उन्होंने पाकिस्तान सरकार से गरीबों की सुरक्षा के लिए अमीरों पर टैक्स बढ़ाने को कहा था।
भारत में भी, आजादी के समय की तुलना में आज बढ़ती आय और धन की असमानता अधिक दिखाई देती है। हाल के लोकसभा चुनाव में भी कई स्तरों पर असमानता को मुद्दा बनाने के प्रयास हुए लेकिन यह वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने में नाकाम रहा। ‘सम्पत्ति की असमानता’ विषय पर वैश्विक फोकस ऐसे वक्त हुआ है जब एशिया के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी के बेटे की करोड़ों डॉलर की शादी की चर्चा पूरे देश में हो रही है। यह बहस का विषय हो सकता है कि ऐसे आयोजन असमानता से लडऩे के लिए उभरते वैश्विक संकल्प के प्रतिकूल हैं या नहीं, पर अत्यधिक अमीरों पर वैश्विक न्यूनतम कर का समर्थन और भारतीय कर संहिता में इस संदर्भ में प्रावधान को लेकर भारत का रुख आने वाले वर्षों में देश की राजनीति को प्रभावित जरूर करेगा।
(द बिलियन प्रेस)

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