scriptरात में जो भी इस मंदिर में रुका, उसकी हो जाती है मौत, 52 शक्तिपीठों में एक है | Ma Mehar Mata temple in Satna, MP | Patrika News
तीर्थ यात्रा

रात में जो भी इस मंदिर में रुका, उसकी हो जाती है मौत, 52 शक्तिपीठों में एक है

देश के 52 शक्तिपीठों में एक मेहर माता का अपना अनूठा स्थान है

Oct 06, 2016 / 03:51 pm

सुनील शर्मा

ma mehar mata

ma mehar mata

देश के 52 शक्तिपीठों में एक मेहर माता का अपना अनूठा स्थान है। मध्यप्रदेश के सतना में स्थित मां शारदा (मेहर माता) की महिमा मां वैष्णो देवी जितनी ही है। इस मंदिर को लेकर कई तरह की प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता हैं कि कोई भी व्यक्ति इस मंदिर में रात को रुक नहीं सकता, अगर कोई रुकता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है।

ये भी पढ़ेः जब भी संकट आएं, मां के इन नामों को स्मरण करें, तुरंत कष्ट दूर होगा

ये भी पढ़ेः मां का आशीर्वाद था, 3000 बम मंदिर की एक ईंट भी नहीं हिला सके


बताया जाता है कि इस मंदिर में हर रात को आल्हा और उदल नाम के दो चिरंजीवी मां के दर्शन करने आते हैं। ये दोनों प्रतिदिन मां के दर्शन करते हैं, उनकी पूजा कर वापस चले जाते हैं। आपको बता दें कि आल्हा और उदल वही वीर हैं जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान को भी हरा दिया था।

मां मेहर को माई कहते थे आल्हा और उदल
दोनों राजपूत भाई आल्हा और उदल मां मेहर के बड़े भक्त थे। कहा जाता है कि इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच में शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। बाद में आल्हा ने इस मंदिर में 12 वर्षों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। जब माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई के नाम से पुकारा करता था। मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं।

ये भी पढ़ेः रोज सुबह उठते ही करें ये 5 काम, दिन भर दिखेगा असर, होंगे सभी काम

ये भी पढ़ेः रोजाना कुछ देर के लिए गायब हो जाता है यह शिव मंदिर, दर्शन मात्र से होता है कल्याण

उनके नाम पर तालाब भी है

मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। रात के समय मंदिर को बंद कर दिया जाता है। कहा जाता है कि इसी समय दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं। दोनों मिलकर मां का संपूर्ण श्रंगार करके जाते हैं। यही कारण है कि किसी को रात के समय यहां नहीं रुकने दिया जाता। अगर कोई जबरन यहां रुकता हैं तो उसकी मृत्यु हो सकती हैं।

अन्य देवताओं की भी होती है पूजा
पर्वत पर सिर्फ माता का ही मंदिर नहीं है इनके साथ में काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

ये भी पढ़ेः घर में आए भूत-प्रेतों को भगाने के लिए आजमाए ये आसान 10 उपाय

ये भी पढ़ेः इसलिए भगवान विष्णु को माना जाता है सर्वश्रेष्ठ देवता

मंदिर के पीछे की यह है कहानी

शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन, राजा दक्ष शिव को भगवान नहीं, भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। वे इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। फिर भी सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने बृहस्पति सर्व नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर भगवान महादेव को नहीं बुलाया।

ये भी पढ़ेः अगर सुबह दिखें ये चीजें तो समझिए करोड़पति बनने वाले हैं आप

ये भी पढ़ेः रातोंरात किस्मत बदल देते हैं रावण संहिता के ये 10 तांत्रिक उपाय

ये भी पढ़ेः एक रुपया भी खर्च नहीं होगा और घर में आने लगेगी दिन-दूनी, रात-चौगुनी लक्ष्मी

राजा दक्ष ने शिव को किया था अपमानित

महादेव की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भरे समाज में भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहा। तब इस अपमान से पीडि़त होकर सती मौन होकर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ गईं और भगवान शंकर के चरणों में अपना ध्यान लगाकर योग मार्ग द्वारा वायु तथा अग्नि तत्व को धारण कर अपने शरीर को अपने ही तेज से भस्म कर दिया।

… और खुल गया तीसरा नेत्र
भगवान शंकर को जब इसका पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और यज्ञ का नाश हो गया। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के अंग को बावन भागों में विभाजित कर दिया।

ये भी पढ़ेः लाल किताब के इन उपायों से आप भी बन सकते हैं करोड़पति, लेकिन जरूरत होने पर ही करें

ये भी पढ़ेः अगले 10 सैकेंड में आप भी जान सकते हैं, क्या है आपका भाग्य

जहां आभूषण गिरे वहीं शक्ति पीठों का निर्माण

जहां-जहां सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। उन्हीं में से एक शक्तिपीठ है मैहर देवी का मंदिर। यहां मां सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब है, मां का हार, इसी वजह से इस स्थल का नाम मैहर पड़ा। अगले जन्म में सती ने हिमाचल राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया।

ये भी पढ़ेः भगवान शिव को तुरंत प्रसन्न करते हैं ये उपाय, परन्तु हर किसी को नहीं बताने चाहिए

ये भी पढ़ेः बुधवार को ऐसे करें गणेशजी की पूजा, तुरंत पूरी होगी हर मनोकामना

विक्रमी संवत 559 में हुई थी प्रतिमा की स्थापना

मां शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। प्रतिमा पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। शिलालेख में बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। इस मंदिर में पुराने समय से ही बलि देने की प्रथा है। परन्तु 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।

Hindi News / Astrology and Spirituality / Pilgrimage Trips / रात में जो भी इस मंदिर में रुका, उसकी हो जाती है मौत, 52 शक्तिपीठों में एक है

ट्रेंडिंग वीडियो