8 जून को लौटना था बेंगलूरु
समूह ने 30 मई को सिला गांव से ट्रैकिंग शुरू की थी और 2 जून तक गैरू, कुश कल्याण, क्यार्की बुग्याल और लम्बाताल को कवर किया था। इसके बाद सभी ने 3 जून को लम्बाताल से सहस्त्र ताल चोटी तक अपनी ट्रैकिंग शुरू की और उन्हें लम्बाताल वापस लौटना था। उन्हें 4 जून को लम्बाताल से क्यार्की बुग्याल तक ट्रैकिंग करनी थी और अंतत: 8 जून को बेंगलूरु वापस लौटना था।
समूह ने 30 मई को सिला गांव से ट्रैकिंग शुरू की थी और 2 जून तक गैरू, कुश कल्याण, क्यार्की बुग्याल और लम्बाताल को कवर किया था। इसके बाद सभी ने 3 जून को लम्बाताल से सहस्त्र ताल चोटी तक अपनी ट्रैकिंग शुरू की और उन्हें लम्बाताल वापस लौटना था। उन्हें 4 जून को लम्बाताल से क्यार्की बुग्याल तक ट्रैकिंग करनी थी और अंतत: 8 जून को बेंगलूरु वापस लौटना था।
कोई भी चीज दिखाई नहीं दे रही थी
यात्रा का आयोजन करने वाले कर्नाटक पर्वतारोहण संघ, बेंगलूरु के सचिव श्रीवत्स ने बताया कि 3 जून की दोपहर को यह त्रासदी हुई। सहस्त्र ताल चोटी पर नजारे का आनंद लेने के बाद, समूह बेस कैंप की ओर लौट रहा था। दो सदस्य मुख्य समूह से आगे थे और बाद में हुई घटनाओं से प्रभावित नहीं हुए। दोपहर करीब 3.30 बजे बर्फीले तूफान के कारण सफेदी छा गई और ट्रेकर्स कुछ देख नहीं पा रहे थे।
यात्रा का आयोजन करने वाले कर्नाटक पर्वतारोहण संघ, बेंगलूरु के सचिव श्रीवत्स ने बताया कि 3 जून की दोपहर को यह त्रासदी हुई। सहस्त्र ताल चोटी पर नजारे का आनंद लेने के बाद, समूह बेस कैंप की ओर लौट रहा था। दो सदस्य मुख्य समूह से आगे थे और बाद में हुई घटनाओं से प्रभावित नहीं हुए। दोपहर करीब 3.30 बजे बर्फीले तूफान के कारण सफेदी छा गई और ट्रेकर्स कुछ देख नहीं पा रहे थे।
लग रहा था कि कोई नहीं बचेगा
समूह में शामिल वर्षीय मधु किरण (52) रेड्डी ने बताया कि तूफान के आने तक ट्रेक किसी भी तरह से जटिल नहीं था। समूह में ज्यादातर अनुभवी ट्रेकर्स थे। वे खुद 25 से 30 बार ट्रेकिंग कर चुके हैं। सब कुछ ठीक चल रहा था। सभी लौट रहे थे। अचानक बर्फीला तूफान शुरू हो गया और करीब चार घंटे तक चला। एक फीट आगे की कोई भी चीज दिखाई नहीं दे रही थी। आंधी-तूफान के साथ होले पड़ रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। दल के कई सदस्य अलग-थलग हो गए थे। लग रहा था कि कोई नहीं बचेगा।
समूह में शामिल वर्षीय मधु किरण (52) रेड्डी ने बताया कि तूफान के आने तक ट्रेक किसी भी तरह से जटिल नहीं था। समूह में ज्यादातर अनुभवी ट्रेकर्स थे। वे खुद 25 से 30 बार ट्रेकिंग कर चुके हैं। सब कुछ ठीक चल रहा था। सभी लौट रहे थे। अचानक बर्फीला तूफान शुरू हो गया और करीब चार घंटे तक चला। एक फीट आगे की कोई भी चीज दिखाई नहीं दे रही थी। आंधी-तूफान के साथ होले पड़ रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। दल के कई सदस्य अलग-थलग हो गए थे। लग रहा था कि कोई नहीं बचेगा।
वापसी का रास्ता नहीं मिल रहा था
उस भयावह घटना को याद करते हुए मधु ने कहा, वापस जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। सभी ने जब तक हो सके वहीं रहने का फैसला किया। हम सभी एक बड़ी चट्टान के नीचे शरण लिए हुए थे और रात में ठंड (Hypothermia) के कारण हमारे सामने ही दो लोगों की मौत हो गई। सुबह तक दो अन्य लोग मर गए जबकि अगले दिन पांच और लोगों की मौत हो गई। आखिरकार हमें वापस जाने का रास्ता मिला। इस दौरान हम अपने बेस कैंप से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर थे। ठंड और हवा इतनी खराब थी किकई ट्रेकर्स के रेनकोट, दस्ताने और जैकेट उड़ गए। Base Camp पहुंचने के बाद ठंड की वजह से खाना तक खाया नहीं जा रहा था।
उस भयावह घटना को याद करते हुए मधु ने कहा, वापस जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। सभी ने जब तक हो सके वहीं रहने का फैसला किया। हम सभी एक बड़ी चट्टान के नीचे शरण लिए हुए थे और रात में ठंड (Hypothermia) के कारण हमारे सामने ही दो लोगों की मौत हो गई। सुबह तक दो अन्य लोग मर गए जबकि अगले दिन पांच और लोगों की मौत हो गई। आखिरकार हमें वापस जाने का रास्ता मिला। इस दौरान हम अपने बेस कैंप से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर थे। ठंड और हवा इतनी खराब थी किकई ट्रेकर्स के रेनकोट, दस्ताने और जैकेट उड़ गए। Base Camp पहुंचने के बाद ठंड की वजह से खाना तक खाया नहीं जा रहा था।
बद से बदतर
60 से ज्यादा बार ट्रेकिंग का अनुभव रखने वाले श्रीरामुलु सुधाकर (64) ने कहा, यह एक भयानक बर्फीला तूफान था। चट्टानों के बीच छिपकर सभी तूफान के थमने का इंतजार करने लगे। पूरी रात सभी फंसे रहे। अत्यधिक ठंड और आवश्यक वस्तुओं, जैसे tent और भोजन की कमी ने हालात को बद से बदतर बना दिया। इस दौरान पहले दो, फिर दो और करीब 12 घंटों के बाद पांच साथी मौत से जिंदगी की जंग हार गए। बेस कैंप और शिखर के बीच कम दूरी को देखते हुए, हमने टेंट और अतिरिक्त प्रावधानों की आवश्यकता का अनुमान नहीं लगाया था।
60 से ज्यादा बार ट्रेकिंग का अनुभव रखने वाले श्रीरामुलु सुधाकर (64) ने कहा, यह एक भयानक बर्फीला तूफान था। चट्टानों के बीच छिपकर सभी तूफान के थमने का इंतजार करने लगे। पूरी रात सभी फंसे रहे। अत्यधिक ठंड और आवश्यक वस्तुओं, जैसे tent और भोजन की कमी ने हालात को बद से बदतर बना दिया। इस दौरान पहले दो, फिर दो और करीब 12 घंटों के बाद पांच साथी मौत से जिंदगी की जंग हार गए। बेस कैंप और शिखर के बीच कम दूरी को देखते हुए, हमने टेंट और अतिरिक्त प्रावधानों की आवश्यकता का अनुमान नहीं लगाया था।
जो जहां था, वहीं रुक गया
ट्रेकर्स ने dry fruit खाकर जान बचाई। ट्रेकर स्मृति प्रकाश ने बताया कि बर्फीले तूफान ने सबको दहला दिया। जो जहां था, वहीं रुक गया। नेटवर्क नहीं होने के कारण किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। रात को अंधेरा होने पर जान बचाना और भी मुश्किल हो गया। किसी तरह Mobile की टार्च जलाकर एक-दूसरे से बातचीत करते रहे और दिलासा देते रहे। सुबह Helicopter पहुंचने पर जान में जान आई। लेकिन, करीब 24 घंटे इतने खौफनाक गुजरे कि जीवनभर भूल नहीं पाएंगे।
ट्रेकर्स ने dry fruit खाकर जान बचाई। ट्रेकर स्मृति प्रकाश ने बताया कि बर्फीले तूफान ने सबको दहला दिया। जो जहां था, वहीं रुक गया। नेटवर्क नहीं होने के कारण किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। रात को अंधेरा होने पर जान बचाना और भी मुश्किल हो गया। किसी तरह Mobile की टार्च जलाकर एक-दूसरे से बातचीत करते रहे और दिलासा देते रहे। सुबह Helicopter पहुंचने पर जान में जान आई। लेकिन, करीब 24 घंटे इतने खौफनाक गुजरे कि जीवनभर भूल नहीं पाएंगे।