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आलू था जिले की पहचान, अब किसानों ने बंद की खेती

मंडी में आलू लेकर पहुंचा किसान।

टीकमगढ़May 05, 2024 / 07:46 pm

anil rawat

मंडी में आलू लेकर पहुंचा किसान।

मंडी में आलू लेकर पहुंचा किसान।

बीजोपचार और किस्म परिर्वतन न करने से कम होने लगी आलू की पैदावार

टीकमगढ़/निवाड़ी. एक समय आलू उत्पादन के लिए पहचाने जाने वाले निवाड़ी में अब लगातार इसका उत्पादन कम होता जा रहा है। आलू का उत्पादन कम होने का असर जिले के कोल्ड स्टोर के कारोबार पर भी पड़ता दिख रहा है। जिले में पाई जाने वाली हल्की बालुई दोमट मिट्टी जहां कंधारित फसलों के लिए अनुकूल है तो किसानों द्वारा इनका बीजोपचार न करने एवं किस्म परिवर्तित न करने से अब आलू की पैदावार पर वितरित प्रभाव पड़ने लगा है।
अदरक, अरबी और आलू एक समय निवाड़ी जिले की पहचान हुआ करती थी। यहां पर आलू की बहुतायत पैदावार के चलते ही इस क्षेत्र में एक-दो नहीं चार-चार कोल्ड स्टोर्स भी संचालित होने लगे थे। कुछ समय तक किसानों को आलू की फसल से खासा मुनाफा हुआ तो समय के साथ अब किसान इससे मुंह मोड़ते जा रहे है। किसानों का आलू की फसल से मोहभंग होने के कारण बताते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ. योग रंजन ने बताया कि इस क्षेत्र में पाई जाने वाली हल्की बालुई दोमट मिट्टी कंध फसलों के लिए अनुकूल है। यही कारण है कि यहां पर आलू, अरबी और अदरक के साथ ही हल्दी की अच्छी पैदावार होती थी। उनका कहना था कि हल्की मिट्टी होने से इसमें फंगल की बीमारी भी जल्द पकड़ती है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि किसान कंध फसलों को लगाने के पहले उसका बीजोपचार (सीड ट्रीटमेंट) करें, लेकिन सब्जी वर्गीय फसलों के लिए अभी तक जागरूकता नहीं आई है। उनका कहना था कि कंध की फसल के लिए यह भी जरूरी है कि समय के साथ इनकी वैरायटी में बदलाव किया जाए। क्यों कि एक ही बीज हर बार लगाने से यहां का फंगल इस बीज को खराब कर देता है। इस क्षेत्र में किसान आज भी देशी किस्म के बीज का उपयोग कर रहे है और इसका परिणाम है यह है कि इसकी गुणवत्ता के साथ ही उत्पादन भी प्रभावित होने लगा है।
लगातार कम हो रहा रकवा
विदित हो कि पिछले दो साल में ही आलू की खेती का रकवा 300 हैक्टेयर के लगभग कम हो गया है। वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी राजू अहिरवार की माने तो 2022 तक जिले में 1200 हैक्टेयर क्षेत्र में आलू की बोवनी होती थी, लेकिन इस बार यह घट कर 900 हैक्टेयर पर आ गई है। आलू की खेती करने वाले बिनवारा के किसान नरेंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि गांव में 10 हजार क्विंटल से अधिक आलू पैदा होता था। अब 100 क्विंटल आलू की पैदावार भी नहीं हो रही है। आलू के कीमतों में होने से लागत निकलना मुश्किल हो गया है। मुडारा के सरपंच फूल सिंह यादव बताते है कि कीमत कम होने से किसानों का आलू की फसल से मन हट गया है।
बाहर जाता था आलू, प्रशिक्षण जरूरी
विदित हो कि इस क्षेत्र का आलू सागर, जबलपुर सहित अन्य स्थानों पर भेजा जाता था, लेकिन किसानों को समय से तकनीकि जानकारी न मिलने से यहां की गुणवत्ता खत्म होने लगी है। ऐसे में यहां के माल को बाहर के व्यापारियों ने लेना बंद कर दिया है। यदि किसानों को इसके लिए उचित सलाह दी जाए और क्षेत्र में आलू आधारित उद्योग स्थापित किए जाए तो यहां की जमीन की खासियत के अनुरूप आलू से अच्छा रोजगार पैदा किया जा सकता है।
बंद कर दिए कोल्ड स्टोर
कोल्ड स्टोर संचालक अमिताभ नगरिया की माने तो उन्होंने आलू रखना बंद कर दिया है। उनका कहना है कि आलू की कीमतों में कमी आने पर किसानों ने अपना माल उठाना ही बंद कर दिया था। ऐसे में किसानों के साथ ही उन्हें भी घाटा होने लगा था। अब उन्होंने कोल्ड स्टोर बंद कर वेयर हाउस का कम शुरू कर दिया है और गेहूं का स्टॉक कर रहे है। एक अन्य कोल्ड स्टोर संचालक हरिओम अग्रवाल ने भी आलू से नुकसान होने की बात कहते हुए बताया कि अब वह महुआ रख रहे है। इसकी किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है।
कहते है अधिकारी
क्षेत्र में आलू की पैदावार कम हो रही है और रकवा में कमी आ रही है। पहले जिले के 1200 हैक्टेयर के लगभग क्षेत्र में आलू होता था अब यह 900 के पास पहुंच गया है। किसान कीमत न मिलने से आलू की खेती से बच रहे है।- राजू अहिरवार, वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी, निवाड़ी।

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