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पिछले साल 8.50 लाख पौधे लगाने का दावा, जीवित आधे भी नहीं, इस साल का लक्ष्य 10 लाख, इसके बाद भी घट रहा ग्रीन कवर

– ये कैसा पौधरोपण, दमोह. शहर में ग्रीन कवर बढ़ाने के नाम पर छलावा ही हो रहा है। पिछले वर्ष रोपे गए 8 लाख पौधों में से आधे भी नहीं बचे, इस वर्ष 10 लाख पौधे लगाकर ग्रीन कवर बढ़ाने की तैयारी है। लेकिन यहां स्थिति उलट है, ग्रीन कवर बढ़ने की जगह घट रहा […]

सागरJun 14, 2024 / 07:43 pm

प्रवेंद्र तोमर

– ये कैसा पौधरोपण,

दमोह. शहर में ग्रीन कवर बढ़ाने के नाम पर छलावा ही हो रहा है। पिछले वर्ष रोपे गए 8 लाख पौधों में से आधे भी नहीं बचे, इस वर्ष 10 लाख पौधे लगाकर ग्रीन कवर बढ़ाने की तैयारी है। लेकिन यहां स्थिति उलट है, ग्रीन कवर बढ़ने की जगह घट रहा है। शासन का रुपया पौधरोपण के नाम पर सिर्फ खर्च हो रहा है। लेकिन इसके सकारात्मक नतीजे सामने नहीं आ रहे। बता दें कि इस साल भी बारिश शुरू होने से ठीक पहले पौधरोपण का विभागीय लक्ष्य निर्धारित हो चुका है। बरसात पूर्व गड्ढे खोदने का काम जारी है।
चंद पौधे लगाकर वाहवाही लूटने पर फोकस

सूत्र बताते हैं कि पौधरोपण के दौरान गड़बड़ियां चरम पर रहती हैं। लेकिन अफसरों का फोकस सिर्फ चंद पौधे लगाकर वाहवाही लूटने पर रहता है। सबसे अधिक शिकायतें कागजों में पौधरोपण को लेकर होती हैं। इसके अलावा जहां पौधरोपण होता है, वहां देखरेख के अभाव की स्थिति देखी जाती है। यही वजह है कि प्लांटेशन तबाह हो जाता है। जिले में पौधरोपण धरातल पर सफल होता नहीं दिख रहा है। पिछले दो तीन सालों के दौरान वन विभाग ने जिले के विभिन्न वन परिक्षेत्रों में लाखों पौधे लगवाए थे। इनमें से ज्यादातर पौधे सूखकर गायब हो चुके हैं। ऐसे में जहां पौधरोपण हुआ था, वहां अब खाली मैदान नजर आ रहे हैं। लेकिन मजे की बात ये है कि पौधरोपण की सफलता दर को लेकर वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बड़ेबड़े दावे भी किए जा रहे हैं, लेकिन यह दावे जमीनी हकीकत से ठीक परे है।
आंवला, आम, शीशम, बांस, सागौन के पौधे रोपे थे

पिछले साल २०२३ में वन विभाग ने साढ़े आठ लाख पौधों का रोपण कराया था। यह पौधे जिले की 8 वन परिरक्षेत्रों के 48 स्थानों पर रोपे जाना बताया गया है। इनमें आंवला, आम, शीशम, बांस, सागौन आदि शामिल थे। बता दें कि जहां पौधरोपण हुआ वहां फोकस किया जाए, तो जगहों पर कटीली झाडिय़ां ही नजर आ रही हैं।
हालांकि इन सब के बीच हजारों पौधे अभी भी जीवित हैं और पेड़ बनने का सफर कर सकते हैं, लेकिन इनकी सुरक्षा पर अभी सवालों में ही है। क्योंकि ज्यादातर जगह प्लांटेशन की सुरक्षा को लेकर लापरवाही शुरूआत से ही देखी जा रही है। लिहाजा पिछले साल के पौधे पेड़ बनेंगे यह कहना भी परिस्थितियों के अनुसार कठिन है।
बारिश ही एक मात्र अमृत

प्लांटेशनों में जितने भी पौधे रोपे जाते हैं इनमें अधिकांश जगहों पर पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। पौध रोपण बारिश के सीजन के शुरूआत में ही होता है। इससे सीजन पर पौधे जीवित बने रहते हैं, लेकिन ठंड और पहली गर्मी पौधों के वजूद को तोड़ देती है। यही वजह है कि, जो विभाग द्वारा जो पौधे रोपे जाते हैं उनमें यदि तीस फीसदी भी पौधे जीवित रह गए और बारिश के दूसरे सीजन तक पहुंच गए, तो उनके पेड़ बनने की उम्मीद की जा सकती है।
शासन को हो रही लाखों की क्षति

ग्रीन कवर को लेकर शासन हर साल पौधरोपण पर लाखों रुपए खर्च करता है। लेकिन पौधरोपण उम्मीद के मुताबिक सफल न होने से राशि बर्बादी की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। साथ ही हर साल फर्जी पौधरोपण के मामले सामने भी आते हैं। खानापूर्ति के लिए कई जगहों पर गड्ढे खुदवा दिए जाते हैं, लेकिन उनमें पौधरोपण नहीं होता। जबकि कागजों में पौधरोपण दिखाकर सरकारी राशि निकाल ली जाती है।
यह है पिछले साल की स्थिति

साल २०२३ में ८.५० लाख पौधों का रोपण

साल २०२४ में १० लाख पौधरोपण का लक्ष्य

पौधरोपण परिक्षेत्र संख्या ०८

वर्जन

इस साल पौधरोपण का लक्ष्य तकरीबन दस लाख का है, पौधों की सुरक्षा को लेकर भी कार्य किया जाता है। अभी यह नहीं बता सकते कितने पौधे जीवित रहे।
आरसी चौबे, एसडीओ, वन विभाग

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