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बायबैक नीति के रूप में निपटान की संभावनाएं तलाशने में जुटी सरकार

विशेषज्ञों के अनुसार घरों में भी खतरनाक ई-कचरे की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। ई-कचरे की बढ़ती समस्या का अंदाजा 2020-21 के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। इस अवधि में देश में करीब 3.4 लाख टन ई-कचरा निकला। अकेले कर्नाटक Karnataka में सालाना 0.8 टन ई-कचरा निकलता है।

बैंगलोरSep 17, 2024 / 06:28 pm

Nikhil Kumar

  • इलेक्ट्रॉनिक कचरा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों Electronic Devices के बिना अब जीवन की कल्पना भी मुश्किल है। इन उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं। उपभोक्ता भी नए-नए उत्पादों के इस्तेमाल में पीछे नहीं हैं। ऐसे उत्पादा जब पुराने हो जाते हैं या फिर बिगडऩे के बाद बनने लायक नहीं रह जाते हैं तो उपभोक्ता या तो इसे कबाड़ में बेच देते हैं या फिर गैर जिम्मेदाराना तरीके से इधर-उधर फंक देते हैं। कई कबाड़ की दुकानों पर भी सही तरके से इसका निपटान नहीं हो पाता है। यहीं से आरंभ होती है ई-कचरे (इलेक्ट्रॉनिक) की समस्या। यह कचरा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरा बनता जा रहा है। अकेले कर्नाटक में प्रतिवर्ष 0.8 टन ई-कचरा उत्पन्न होता है। निपटान एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। ई-कचरे E-waste के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रिया का अभाव है। सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया है और निपटान के विकल्प तलाश रही है।
कार्य योजना बनाने के निर्देश
वन एवं पारिस्थितिकी मंत्री ईश्वर खंड्रे ने अपने अधिकारियों से एक कार्ययोजना बनाने को कहा है, जिसके तहत वे ई-कचरा वापस खरीद सकें। अधिकारियों को पुराने ई-उपकरणों की खरीद के पक्ष-विपक्ष पर एक महीने के भीतर प्रस्ताव प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
उन्होंने कहा, विशेषकर बेंगलूरु Bengaluru में में लगातार भारी मात्रा में ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है। इसलिए सरकार ने घरों में दिन-प्रतिदिन खतरनाक ई-कचरे की बढ़ती मात्रा और इसके असुरक्षित निपटान पर ध्यान दिया है। सार्वजनिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ई-कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान जरूरी है।

डेटा का दुरुपयोग न हो
इस संबंध में यदि ऐसा नियम लागू किया जाए कि विक्रेता को ग्राहक द्वारा नया टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल आदि खरीदने पर न्यूनतम मूल्य पर पुराने टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल फोन, चार्जर आदि अनिवार्य रूप से वापस खरीदने होंगे, तो इससे ई-कचरे पर नियंत्रण में मदद मिल सकती है। ऐसा करते समय सुरक्षित करना होगा कि पुराने कंप्यूटर और मोबाइल के डेटा Data का दुरुपयोग न हो। इस संदर्भ में पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीद के पक्ष-विपक्ष पर प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

राज्य में सालाना 0.8 टन ई-कचरा
विशेषज्ञों के अनुसार घरों में भी खतरनाक ई-कचरे की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। ई-कचरे की बढ़ती समस्या का अंदाजा 2020-21 के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। इस अवधि में देश में करीब 3.4 लाख टन ई-कचरा निकला। अकेले कर्नाटक Karnataka में सालाना 0.8 टन ई-कचरा निकलता है। ई-कचरा आज की दुनिया में सबसे तेजी से बढऩे वाले कचरे में से एक है और इसका अनुचित निपटान पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।

सामान बेचने का अवसर

अधिकारियों का भी मानना है कि ई-कचरे के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए एक अनिवार्य बायबैक नीति Buyback Policy लागू की जानी चाहिए। इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक सामान के खुदरा विक्रेता उपभोक्ताओं को नए सामान खरीदते समय पुराने उपकरणों के बदले में सामान बेचने का अवसर प्रदान कर सकते हैं।

सीसा, पारा और कैडमियम
एक अधिकारी ने कहा, बायबैक कार्यक्रम में भाग लेने वाले खुदरा विक्रेताओं के लिए प्रमाणित ई-कचरा रीसाइक्लिंग केंद्रों के साथ सहयोग करना आवश्यक होना चाहिए। इन केंद्रों को ई-कचरा निपटान के लिए सरकार द्वारा अनुमोदित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सीसा, पारा और कैडमियम जैसे हानिकारक पदार्थ पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करें।

उत्पादों के जीवन चक्र के लिए हों जवाबदेह
एक अन्य अधिकारी के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं को अपने उत्पादों के संपूर्ण जीवन चक्र के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) के माध्यम से, कंपनियों को अपने उत्पादों से उत्पन्न ई-कचरे की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य किया जाएगा, या तो सीधे वापस लेने के कार्यक्रमों के माध्यम से या रीसाइक्लिंग केंद्रों के साथ साझेदारी के माध्यम से।

भारत प्रमुख उपभोक्ता
दुनिया के देशों में तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति Electronic Revolution से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे electronic waste से होने वाले खतरे ने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया खासकर पूरे भारत की चिंता बढ़ा दी है। पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस कचरे का भारत प्रमुख उपभोक्ता है। मोबाइल फोन, लैपटॉप, फैक्स मशीन, फोटो कॉपियर, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कम्प्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं।

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