डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में सेलुलर और मॉलीक्यूलर विभाग के प्रोफेसर हंस ईबर्ग की अगुवाई में हुए शोध में छह से 10 हजार साल पहले के एक जीन म्यूटेशन की पहचान की गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस म्यूटेशन के कारण मनुष्यों में नीली आंखें उभरीं। म्यूटेशन ने ओसीए-2 जीन में बदलाव किया। ओसीए-2 जीन में म्यूटेशन ‘पी’ प्रोटीन में बदलाव ला सकता है, जो मेलेनिन बनने और उसके फैलने को प्रभावित करता है। जिन लोगों में मेलेनिन बहुत कम या बिल्कुल नहीं बनता, उनकी त्वचा बहुत गोरी, बाल और आंखें हल्के रंग की होती हैं।
ओसीए-2 जीन से तय होता है नेत्रों का रंग शोध के मुख्य लेखक हंस ईबर्ग का कहना है कि ओसीए-2 जीन आम आबादी में आंखों के रंग में भिन्नता से जुड़ा है। जीन के विभिन्न संस्करणों के आईरिस में मेलेनिन की मात्रा और वितरण पर असर डालने के कारण आंखों का रंग नीला या भूरा हो सकता है।
कई देशों की पड़ताल शोधकर्ताओं ने जॉर्डन, डेनमार्क, तुर्किए समेत कई देशों के लोगों की आंखों के रंग और उनके माइटोकॉन्ड्रियाई डीएनए की पड़ताल की। उनका कहना है कि इसका अस्तित्व के संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं है और न ही यह अच्छा या बुरा असर बताता है। कुदरत लगातार इंसान के जीनोम में बदलाव करती रहती है।