कहते हैं कि ध्यान चंद जब स्टिक लेकर मैदान में उतरते थे तो गेंद उनकी हॉकी से चिपक कर भागती थी। ऐसे में कुछ लोगों ने उनकी हॉकी में चुंबक तो कुछ ने तेज गोंद होने का दावा किया, लेकिन जब जांच में यह गलत साबित हुआ तो ध्यानचंद के करिश्माई खेल के लिए उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ (hockey ke jadugar major dhyan chand) के नाम से विभूषित किया गया।
कैसे बने हॉकी के जादूगर 1928 में एम्सटर्डम में हुए अपने पहले ओलंपिक में ध्यान चंद (major dhyan chand) ने सबसे ज्यादा 14 गोल कर गोल्ड मेडल दिलवाया। वे जिस तरह से अपनी स्टिक पर गेंद लेकर भागते तो विपक्षी तमाम कोशिशों के बावजूद उनसे गेंद हासिल नहीं कर पाते। कुछ लोगों को शक हुआ कि उनकी स्टिक में जरूर कुछ विशेष बात है। जानकारी के मुताबिक नीदरलैंड (हालैंड) के खेल अधिकारियों ने ध्यान चंद की स्टिक तोड़कर जांच करवाई कि कहीं उसमें किसी विशेष प्रकार का चुंबक तो नहीं लगा है। शक निराधार होने पर उन्होंने ध्यान चंद से माफी मांगते हुए उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ (hockey ke jadugar) बताया।
मेजर ध्यानचंद के मुरीद हुए डॉन ब्रेडमैन क्रिकेट के अजूबा कहे जानेवाले सर डॉन ब्रेडमैन का प्रशंसक दुनिया का हर क्रिकेट प्रेमी है, लेकिन ब्रेडमैन भी ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद से प्रभावित थे। साल 1935 में ध्यानचंद की टीम ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी, जहां उन्होंने 48 मैचों में 201 गोल किए। इस दौरान ब्रेडमैन भी ऑस्ट्रेलिया में एक मैच देखने आए थे। ऐसे में ध्यानचंद को ताबड़तोड़ गोल करते देख वो दंग रह गए। मैच खत्म होने पर वे ध्यानचंद से मिले और कहा, -आप तो ऐसे गोल कर रहे थे मानों रन बना रहे हैं।
यह भी पढ़ें