दरअसल, मध्यप्रदेश में लंबे समय से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए सरकार बनाई, लेकिन पार्टी की अंदरूनी झगड़े के चलते सरकार चली गई। इसके बाद पार्टी का प्रदर्शन लगातार खराब होता चला गया। मध्यप्रदेश में कई बड़े नेताओं के साथ हजारों कार्यकर्ताओं ने पार्टी को छोड़ा है। इंदौर जैसी लोकसभा सीट पर अधिकृत उम्मीदवार ने नामांकन वापस ले लिया। अब छिंदवाड़ा में पूर्व सीएम कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ तो राजगढ़ ेमें पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। मध्यप्रदेश के एक बड़े नेता ने कहा कि मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद संगठन कोलेप्स कर गया। पार्टी से नेता जाते रहे, जिन्हें रोकने का कोई प्लान तक नहीं बना।
सुक्खू-विक्रम के झगड़े का असर
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में वापसी कर सरकार बनाई, लेकिन कुछ ही समय में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य का झगड़ा सामने आ गया। इसके चलते सरकार संकट में फंस गई। इसी बीच हुए लोकसभा चुनाव में इस झगड़े का असर दिखा और एक बार फिर कांग्रेस का खाता नहीं खुला। उत्तराखंड में फिर बुरा हाल
उत्तराखंड में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। यहां एक बार फिर लोकसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर कांग्रेस का सफाया हो गया।
दिल्ली: मालीवाल मामले का नुकसान
यहां सातों सीटों पर कांग्रेस ने आप के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। कांग्रेस को तीन सीटें मिली। कांग्रेस नेता साफ कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के चरम पर होने के दौरान राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल मामले ने माहौल को पूरी तरह बदल दिया। इसका नुकसान आप के साथ कांग्रेस को भी उठाना पड़ा है।
बूथवार तलाशेंगे ट्रेंड
सीडब्ल्यूसी बैठक में इस पर भी चर्चा हुई कि जहां कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा है, वहां नतीजों की समीक्षा बूथवार करनी चाहिए। इससे ट्रेंड का पता लग सकता है। साथ ही उन वर्गों का पता लग सकता है, जो कांग्रेस से लगातार दूरी बनाए हुए हैं। इससे कांग्रेस को अपनी आगे की नीतियां बनाने में आसानी होगी।