बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में सरकार को जातीय सर्वे की पंचायत-वार रिपोर्ट और इस सर्वे के आधार पर तैयार होने वाले विकास मॉडल का प्रारूप सदन के पटल पर रखना चाहिए। शनिवार को मीडिया में बयान जारी करते हुए राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम ने कहा कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षण देने के लिए पिछले साल बिहार सरकार ने डेडीकेटेड अतिपिछड़ा आयोग गठित किया था। उसकी रिपोर्ट जारी नहीं हुई। उन्होंने कहा कि वह रिपोर्ट भी विधान मंडल में प्रस्तुत की जानी चाहिए।
अमित शाह के बयान से मिर्ची लगी
जातीय जनगणना का श्रेय लूटने में लगे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सकारात्मक वक्तव्य से तीखी मिर्ची लग रही है। वे भाजपा की छवि बिगाड़ने के लिए केंद्र की प्रतिकूल टिप्पणी की उम्मीद कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बिहार में जातीय सर्वे कराने का निर्णय उस राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार का था, जिसमें भाजपा के 14 मंत्री थे। उस समय राजद सरकार में नहीं था।
नीतीश कुमार राहुल गांधी से बात करें…
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज उस कांग्रेस के साथ हैं, जिसने कई दशकों तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में रहने के बाद भी न जातीय जनगणना करायी, न पिछड़ों को आरक्षण दिया। उन्होंने कहा कि कर्नाटक की सिद्धरमैया सरकार ने 2015 में जातीय सर्वे कराया था। आठ साल से दबी उस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए नीतीश कुमार क्यों नहीं राहुल गांधी से बात कर रहे हैं। तेलंगाना में केसीआर की सरकार ने भी जातीय सर्वे की रिपोर्ट जारी नहीं की।