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Supreme Court: ‘नागरिक आजादी के लिए एक-एक दिन अहम’, निजी स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसले

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी नागरिक की आजादी के संबंध में एक-एक दिन अहम है। ऐसे में अदालतों को जमानत याचिकाओं पर जल्द फैसले करने चाहिए।

नई दिल्लीMay 18, 2024 / 08:07 am

Akash Sharma

Supreme Court: व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुप्रीम कोर्ट ने तरजीह देते हुए कहा है कि एक-एक दिन की देरी का मायने रखनी है। SC ने दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से जमानत अर्जी 11 महीने से पेंडिंग रखने पर नाराजगी जाहिर की है। SC ने कहा कि नागरिकों की स्वतंत्रता से संबंधित मामले में हर एक दिन अहम है। फैसला देने में देरी नहीं करना चाहिए।

‘नागरिक आजादी के लिए एक-एक दिन अहम, जल्दी फैसला जरूरी’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी नागरिक की आजादी के संबंध में एक-एक दिन अहम है। ऐसे में अदालतों को जमानत याचिकाओं पर जल्द फैसले करने चाहिए। कोर्ट ने दिल्ली शराब घोटाले में आरोपी अमनदीप सिंह ढल्ल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिका में कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट कई महीनों से ढल्ल की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, लेकिन अब तक फैसला नहीं किया गया। जस्टिस बी.आर. गवाई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाईकोर्ट को जमानत याचिका पर जल्द फैसला करने के निर्देश दिए। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता की नियमित जमानत पर हाईकोर्ट 40 मौकों पर सुनवाई कर चुका है। अब मामले को 8 जुलाई तक स्थगित कर दिया है। पीठ ने कहा कि 40 सुनवाई के बाद भी आप नियमित जमानत पर फैसला नहीं कर पा रहे हैं। जो मामले नागरिकों की आजादी से जुड़े हैं, उनमें एक-एक दिन मायने रखता है। नियमित जमानत का मामला 11 महीनों से लंबित है। इससे याचिकाकर्ता की आजादी का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा कि जमानत याचिका पर गर्मियों की छुट्टियों से पहले फैसला करे। हाईकोर्ट में 3 जून से गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो जाएंगी। आखिरी कार्य दिवस 31 मई होगा।

बोलने से रोकने के आदेश पर लगी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने विवेकानंद हत्याकांड के मामले में आंध्र प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के खिलाफ टिप्पणी पर जिला अदालत की रोक के आदेश पर रोक लगा दी। हत्याकांड को लेकर जिला अदालत ने आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष वाई.एस. शर्मिला और अन्य को बोलने से रोकने का आदेश दिया था। इस मामले में शर्मिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि शर्मिला को सुने बिना प्रतिबंध आदेश पारित कर दिया, जिससे उनकी बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा। ऐसे मामलों के परिणाम गंभीर होंगे।
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