विशेष पीठ ने कही ये बात
सीजेआइ संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की विशेष पीठ ने कहा कि हम इस कानून के दायरे, उसकी शक्तियों और ढांचे को जांच रहे हैं। ऐसे में यही उचित होगा कि बाकी सभी अदालतें अपने हाथ रोक लें। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, सुब्रमण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, कृष्ण प्रिया, धर्मगुरु स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती सहित कई लोगों ने याचिकाओं में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है।
धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़
दूसरी तरफ माकपा विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड, जमीयत उलमा-ए-हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी, राजद सांसद मनोज झा ने भी याचिकाएं दायर की हैं। जमीयत का कहना है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से देश में धार्मिक स्थलों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।
इन मामलों पर असर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशभर में चल रहे कई मामलों पर असर पड़ेगा। मथुरा, भोजशाला, ज्ञानवापी, संभल जैसे मामलों में सुनवाई चलती रहेगी, लेकिन कोर्ट कोई फैसला नहीं दे सकेंगे। जौनपुर की अटाला मस्जिद के सर्वेक्षण का मामला भी कोर्ट में है, लेकिन सर्वे का आदेश नहीं दिया जा सकेगा।
18 मामले लंबित
सुनवाई के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने अदालत को बताया कि इस एक्ट के तहत विभिन्न अदालतों में 18 मुकदमे लंबित हैं। उन मामलों में कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए। इस पर आपत्ति जताते हुए दूसरे पक्ष ने कहा कि क्या कोई अजनबी व्यक्ति, जो मामले में पक्षकार नहीं है, आकर कह सकता है कि सारी कार्यवाही पर रोक लगा दी जाए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित किए जा रहे आगे के आदेशों और सर्वेक्षणों पर रोक लगाना उचित समझा।
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
इस एक्ट के अनुसार देशभर के सभी धार्मिक स्थल 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बने रहेंगे। पूजा स्थलों को अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है।