शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
-राहत इंदौरी
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखो
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
पड़ जाएं मिरे जिस्म पे लाख आबले ‘अकबर’
पढ़ कर जो कोई फूंक दे अप्रैल मई जून
-अकबर इलाहाबादी
पिघलते देख के सूरज की गर्मी
अभी मासूम किरनें रो गई हैं
-जालिब नोमानी
गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर
भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर
-मीर अनीस
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बाहर कितना सन्नाटा है अंदर कितनी वहशत है
-ऐतबार साजिद
ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
-अतहर नफ़ीस
कुछ अब के धूप का ऐसा मिज़ाज बिगड़ा है
दरख़्त भी तो यहाँ साएबान माँगते हैं
-मंज़ूर हाशमी
लगा आग पानी को दौड़े है तू
ये गर्मी तेरी इस शरारत के बाद
-मीर तक़ी मीर
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए
-होश तिर्मिज़ी