scriptS Jaishankar: चीन से टाला टकराव, न्यूक्लियर डील में निभाई अहम भूमिका, अब सामने हैं चार बड़ी चुनौतियां | S Jaishankar: Avoided confrontation with China, played important role in nuclear deal, now there are four big challenges ahead | Patrika News
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S Jaishankar: चीन से टाला टकराव, न्यूक्लियर डील में निभाई अहम भूमिका, अब सामने हैं चार बड़ी चुनौतियां

S Jaishankar: विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर पिछले 5 साल में अपनी कूटनीति से कई मौकों पर देश और दुनिया को चौंका चुके हैं। पढ़िए नवनीत मिश्र की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीJun 26, 2024 / 10:19 am

Shaitan Prajapat

S Jaishankar: भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के 1977 बैच के अफसर के रूप में देश की कूटनीति को चार दशक तक धार देने वाले एस.जयशंकर को जब पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्री का ओहदा दिया तो सरकार में इसे सरप्राइज एंट्री माना गया था। विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर पिछले 5 साल में अपनी कूटनीति से कई मौकों पर देश और दुनिया को चौंका चुके हैं। हाजिर जवाब हैं और दो टूक बातों के लिए जाने जाते हैं। उनकी खरी-खरी कूटनीतिक बातों के वीडियो भारत में युवाओं के साथ-साथ दुनियाभर के राजनयिक भी सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।

6 से ज्यादा भाषाओं के जानकार हैं जयशंकर

जयशंकर ने एक बार फिर विदेश मंत्रालय की कमान संभाली है। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, रूसी, जापानी सहित 6 से अधिक भाषाओं के जानकार जयशंकर नेता बन जाने के बावजूद खुद को डिप्लोमेट ही मानते हैं। एक बार कह चुके हैं- आज मैं पॉलिटिशियन ज्यादा हूं, पर 40 साल जो डिप्लोमेट की ट्रेनिंग है, वो जाती नहीं।

जेएनयू से किया न्यूक्लियर डिप्लोमेसी

तमिल मूल के एस जयशंकर 9 जनवरी 1955 को दिल्ली में पैदा हुए। एयरफोर्स स्कूल दिल्ली और मिलिट्री स्कूल बेंगलुरु से शुरुआती पढ़ाई के बाद सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली से ग्रेजुएशन किया और जेएनयू से राजनीति विज्ञान में पीएचडी करने के साथ न्यूक्लियर डिप्लोमेसी में विशेषज्ञता भी हासिल की।

चीन से टाला टकराव

जयशंकर चीन में सर्वाधिक 2009-13 तक भारत के राजदूत रहे। उनके अनुभव का लाभ देश को तब हुआ, जब चीन से 2017 में डोकलाम विवाद हुआ तो गतिरोध दूर करने में जयशंकर ने अहम भूमिका निभाई। डोकलाम ने दोनों देशों को युद्ध की कगार पर पहुंचा दिया था। बीजिंग में तैनाती के दौरान जयशंकर ने भारत और चीन के साथ व्यापार, सीमा और सांस्कृतिक संबंधों में सुधार की कई पहलें कीं।

मिल चुका पद्मश्री

जयशंकर के रिटायर होने पर उनकी कूटनीतिक सेवाओं के लिए मोदी सरकार ने 2019 में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा था। जयशंकर आइएफएस के तौर पर देश के सबसे लंबे कार्यकाल (तीन साल) वाले विदेश सचिव रहे। रिटायरमेंट के बाद जयशंकर टाटा संस में वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के प्रमुख के रूप में जुड़ गए थे। बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल किया। विदेश सचिव के रूप में अमेरिका, चीन सहित आसियान के महत्वपूर्ण कूटनीतिक मुद्दों को सुलझाने में सफल रहे।

न्यूक्लियर डील में निभाई भूमिका

जयशंकर अमरीका में भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव और राजदूत भी रहे। मनमोहन सरकार में 2007 में अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। खास बात है कि चीन व अमरीका में राजदूत के अलावा वे तत्कालीन सोवियत संघ में भारतीय दूतावास में भी द्वितीय व तृतीय सचिव रह चुके हैं। वे श्रीलंका में भारतीय सेना के शांति मिशन के दौरान भी तैनात रहे।

चुनौतियां

  • यूएन सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिलाना
  • सीमा पार आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना
  • चीन के साथ सीमा तनाव दूर करना
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौतों व संगठनों में भारत के हितों की रक्षा
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