शीर्ष अदालत ने कहा है कि आयोग का आदेश ‘गलत’ था। अदालत ने कहा है ‘जब शिकायतकर्ता ने चोरी के तुरंत बाद प्राथमिकी दर्ज की और जब पुलिस ने जांच के बाद आरोपी को गिरफ्तार किया और संबंधित न्यायालय के समक्ष चालान भी दायर किया और जब बीमाधारक का दावा सही नहीं पाया गया तो बीमा कंपनी यह नहीं कह सकती थी की चोरी के बारे में सूचित करने में देरी हुई थी, इसलिए दावा नहीं बनता।
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मौजूदा मामले में बीमा कंपनी ने यह कहते हुए दावा देने से पल्ला झाड़ लिया था कि इसमें पॉलिसी की शर्त नंबर-एक का उल्लंघन गया था। इस शर्त के अनुसार बीमाकर्ता को आकस्मिक नुकसान या क्षति के लिए तत्काल नोटिस देना होता है। लेकिन उसने पांच महीने के बाद चोरी के बारे में बीमा कंपनी सूचित किया था।
जिला उपभोक्ता फोरम ने शिकायतकर्ता को 10 हजार रुपए मुवावजे के साथ बीमा राशि देने का आदेश दिया था। इसके अलावा वाद खर्च के तौर पर पांच हजार रुपए भी देने के लिए भी कहा था। जिला उपभोक्ता आयोग ने आदेश को बीमा कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी थी।
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