राजगुरु का शुरुआती जीवन राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे, जिस उस समय पूना कहा जाता था, के खेड़ गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिनारायण और मां का नाम पार्वती देवी था। राजगुरु के बचपन में ही उनके पिता का एक बीमारी की वजह से देहांत हो गया था। सर से कम उम्र में पिता का साया उठ जाने से उनका बचपन अर्थिक तंगी में बीता। गांव के एक मराठी स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने आगे की कुछ शिक्षा पूना के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल से ली। हालांकि उनका मन पढ़ाई में ना लगकर खेल-कूद में ज्यादा लगता था।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और जलियांवाला हत्याकांड का प्रभाव राजगुरु बचपन से ही लोकमान्य तिलक से प्रभावित थे। उनकी देशप्रेम की कथाओं ने राजगुरु के अंदर के देशप्रेम की भावना को बढ़ा दिया था। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने राजगुरु को विचलित कर दिया। इस घटना से उनके मन में देश की सेवा करने का भाव और भी बढ़ा दिया।
साॅन्डर्स हत्याकांड में अहम भूमिका साइमन कमीशन के चलते पूरे भारत में विरोध का माहौल था। लाला लाजपत राय ने “साइमन वापस जाओ” के नारों से साइमन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इसके चलते अंग्रेजों ने इस प्रदर्शन में लाठीचार्ज करवा दिया, जिससे 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इससे भगत सिंह ने लाला जी की मृत्यु का बदला लेने का फैसला किया। उन्होंने लाहौर के पुलिस अफसर जॉन साॅन्डर्स को मारने का प्लान बनाया। इसके लिए 17 दिसम्बर 1928 का दिन तय किया गया। दिन के 4 बजकर 3 मिनट पर साॅन्डर्स अपनी मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने कार्यालय से निकला। कुछ दूरी पर राजगुरु ने आगे बढ़ते हुए उसे गोली मार दी। इसके बाद भगत सिंह ने भी ज़मीन पर गिरे हुए साॅन्डर्स को कई गोलियां मारी। साॅन्डर्स को मारने के बाद दोनों वहां से निकल गए। उनके इस काम से देश के क्रान्तिकारियों में खुशी का माहौल पैदा हो गया और अंग्रेजों में गुस्सा।
गिरफ्तारी और फांसी अँग्रेजी पुलिस साॅन्डर्स की हत्या के लिए राजगुरु को ढूंढ रही थी। 1929 में पूना में राजगुरु को रात के समय सोते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले भगत सिंह असेंबली बम कांड में अप्रैल 1929 में गिरफ्तार हो चुके थे। साथ ही सुखदेव भी उनके साथ जेल में थे। राजगुरु को भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही अक्टूबर 1930 में फांसी की सजा दी गई और 23 मार्च 1931 को इन तीनों वीर क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दे दी गई।
23 मार्च को भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
23 मार्च को भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह भी पढ़े – शहीद दिवस पर निकली अहिंसा यात्रा 22 साल की कम उम्र में राजगुरु देश के लिए शहीद हो गए। भारत की आज़ादी के लिए उनके प्रयासों से आज़ादी की लड़ाई को मज़बूती मिली और अखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ। राजगुरु को उनकी वीरता, देशप्रेम और देश की आज़ादी के लिए शहीद होने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।