इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ का कहना है कि चंद्रयान-4 मिशन के लिए हमें अंतरिक्ष में डॉकिंग (स्पेसक्राफ्ट के अलग-अलग हिस्सों को जोडऩा) क्षमता हासिल करनी होगी। हम इस क्षमता को विकसित कर रहे हैं। इस साल स्पेडेस्क मिशन में इसका परीक्षण किया जाएगा। चंद्र मिशन में स्पेसक्राफ्ट के मॉड्यूल्स की डॉकिंग रूटीन प्रक्रिया है। इसमें मुख्य स्पेसक्राफ्ट का एक हिस्सा अलग होकर चांद पर लैंड करता है, जबकि बाकी हिस्सा चांद की ऑर्बिट में रहता है। लैंडिंग वाला हिस्सा चांद की सतह छोडऩे के बाद फिर स्पेसक्राफ्ट से जुड़ जाता है। इसरो चंद्र मिशन में पृथ्वी की ऑर्बिट में डॉकिंग की तैयारी कर रहा है।
इसी तरह बनेगा हमारा अंतरिक्ष स्टेशन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) और चीन के तिआनगोंग स्पेस स्टेशन (टीएसएस) के लिए स्पेसक्राफ्ट के हिस्सों को अंतरिक्ष में ही असेंबल किया गया था। सोमनाथ ने कहा, हम दावा नहीं कर रहे हैं कि चंद्र मिशन में ऐसी कोशिश वाले हम पहले हैं, लेकिन मुझे जानकारी नहीं है कि किसी और देश ने इस तरह के मिशन में ऐसा किया हो। भारत का अंतरिक्ष स्टेशन इसी तरह हिस्सों को जोडक़र बनाया जाएगा।
पृथ्वी पर लाए जाएंगे चांद के सैंपल चंद्रयान-4 मिशन में चांद के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे। इसरो मिशन पर विस्तृत स्टडी, इंटरनल रिव्यू और लागत के बारे में रिपोर्ट जल्द सरकार को भेजेगा। चंद्रयान-4 के अलावा तीन और प्रोजेक्ट्स के लिए सरकार की मंजूरी ली जाएगी। इनमें 2035 तक भारत का अंतरिक्ष स्टेशन तैयार करने और 2040 तक इंसान को चांद पर भेजने की योजना शामिल है।