इस साल कृषि विभाग ने 36.56 लाख हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा है। बताया जाता है कि अभी तक 40 से 45 प्रतिशत ही बिचड़े खेतों में गिराए गए हैं। ऐसी स्थिति में कृषि विभाग ने भी तैयारी शुरू कर दी है। कृषि वैज्ञानिकों का भी मानना है कि अब तक बिचड़े खेतों में पड़ जाने चाहिए थे। राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि लंबी अवधि की प्रजाति को देर से डालने वाले किसानों के लिए रबी तक पहुंच कम हो जाएगी। लंबी अवधि का बिचड़ा अब तक खेतों में पड़ जाना चाहिए था। हालांकि शॉर्ट टाइम वाले प्रभेद के लिए अभी एक सप्ताह का टाइम और है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ अखिलेश ने कहा कि किसान 110 से 135 दिनों के कम और मध्यम अवधि वाले धान लगा सकते हैं। बारिश नहीं हो रही है, ऐसे में उत्पादन घटेगा। हाइब्रिड धान की वैरायटी भी लगाना ठीक होगा। इस बीच, मानसून की बेरुखी के बाद कृषि विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है। विभाग सूखे की स्थिति में फसलों की सिंचाई के लिए डीजल अनुदान देगा। इसके लिए राशि भी स्वीकृत कर ली गई है। बताया गया है कि मौसम पूर्वानुमान में राज्य में कई इलाकों में सामान्य तो कई इलाकों में सामान्य से कम बारिश की आशंका जताई गई है। ऐसे में सूखे की भी संभावना प्रबल है।
इस कारण संभावित अनियमित मानसून, सूखा और अल्पवृष्टि जैसी स्थिति में सिंचाई के लिए डीजल अनुदान दिया जायेगा जिससे धान के बिचड़ों और खेतों में लगी फसल बचाई जा सके। किसान बताते हैं कि जिन खेतों में अभी दलदल होनी चाहिए, वहां लंबी और गहरी दरारें दिख रही हैं। खेतों में दूर-दूर तक कहीं भी बिचड़ा डालने के हालात नहीं है। वर्षा में और देरी हुई तो सबसे अधिक नुकसान धान की फसल को हो सकता है।
बिहार कृषि प्रधान राज्य है और धान यहां की मुख्य फसल है। बिहार का ‘धान का कटोरा’ कहा जाने वाला शाहबाद अभी तक पूरी तरह सूखा है। किसानों का मानना है कि अभी भी मानसून की गति धीमी बनी हुई है। जल्द बारिश नहीं हुई तो जिन इलाकों में रोपाई के लिए बिचड़ा तैयार किया गया है, वह भी सूख जाएगा। हालांकि, जिनके पास सिंचाई के अपने साधन हैं, वे इस स्थिति को कुछ हद तक झेल सकते हैं।