यह चुनाव तय करेगा कश्मीर का किंग
दस साल बाद हो रहा यह चुनाव कश्मीर का राजनीतिक राजा कौन होगा, यह तय होने जा रहा है। बात महबूबा और उमर की हो या फिर बात अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ बुखारी और पीपुल्स कांफ्रेंस के मुखिया सज्जाद लोन की। इस चुनाव में आतंक को हवा देने वाले जमात को अभी अपनी अवामी ताकत का पता चल जाएगा। अभी यहां सभी अपनी दिशा तय करने में लगे हैं।
यूपी, बिहार और महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां लड़ रही चुनाव
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां ही नहीं बल्कि यूपी, बिहार और महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां भी चुनावी मैदान में हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की पार्टी जेडीयू तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी बिगुल फूंक रखा है। महाराष्ट्र की पार्टी आरपीआई अठावले भी चुनाव लड़ रही है। आरएलडी, एनसीपी, भीम सेना, सीपीएम और आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। जम्मू-कश्मीर में करीब 20 पार्टियां चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहीे हैं।
कश्मीर में कांग्रेस के साथ नूराकुश्ती कर रही एनसी
जम्मू-कश्मीर की राजनीति ही नहीं देश में भी शायद पहली बार देखने को मिल रहा है कि एक प्रदेश में दो पार्टियां गठबंधन में भी चुनाव लड़ रही हैं और विरोध में भी चुनाव लड़ रही हैं। जम्मू-कश्मीर में एनसी और कांग्रेस का गठबंधन है लेकिन दोनों बनिहाल, डोडा, भदरवाह, देवसर, सोपोर और बारामूला में आमने सामने एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।
हरिशंकर तिवारी से रशीद इंजीनियर तक
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में इस बार यूपी की राजनीतिक झलक कुछ ज्यादा है। सपा के मुखिया अखिलेश यादव की तरह ही नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला भी आक्रामक और हाजिरजवाब के साथ पेश आ रहे हैं तो वहीं पहली बार जेल से यूपी विधानसभा पहुंचे हरिशंकर तिवारी की तरह ही सांसद बने रशीद इंजीनियर का दबदबा है। रशीद इंजीनियर की पार्टी भले ही चुनाव में अपने लिए कुछ खास न कर पाए लेकिन कुछ खास नेताओं की गणित जरूर बिगाड़ती नजर आ रही है।
जमात जब्त करा देगी दिग्ग्जों की जमानत
कश्मीर के लिए सबसे अच्छी और बड़ी खबर यही है कि जमात ने आतंक का पाला छोड़कर एक बार फिर से जम्हूरियत का रास्ता अख्तियार किया है। यह पाकिस्तान के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। इस बदलाव का असर कश्मीर में तो अब सीधे ही दिख रहा है कि अब दस बजे रात तक बारामूला से लेकर कुपवाड़ा तक के बाजार आबाद हैं। जमात भले ही इस चुनाव में बहुत खास न कर पाए लेकिन कई सीटों पर वह दिग्गज नेताओं के जमानत जब्त कराने में भूमिका निभा सकती है।