एक समय था जब महिला उत्पीड़न के मामले बहुत ज्यादा होते थे। पति से प्रताड़ित होकर पत्नियों को ससुराल छोड़ना पड़ता था लेकिन अब स्थिति उलट होने लगी है। उन्हें दहेज से लेकर घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता था लेकिन अब स्थियां बदल रही हैं। अब पत्नी से ज्यादा पति प्रताड़ित होने लगे हैं। पति को अपने घर से निकलना पड़ता है। पत्नी से परेशान होकर पति अलग होना चाहते हैं। के ब्पको अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो आप मध्यप्रदेश के ग्वालियर फैमिली कोर्ट का आंकड़ा उठाकर देख लीजिए। पत्नियों की तुलना में पति अधिक तलाक मांग रहे हैं। तलाक के आवेदन में पत्नी की प्रताड़ना का हवाला दे रहे हैं।
एक दशक में बढ़े पति प्रताड़ना के केस
दरअसल कुटुंब न्यायालय में 2016 में 45 केस आए थे। इन केसों को सुनने के लिए एक जज पदस्थ थे लेकिन समय बदलने के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच विवाद बढ़े। विवाद चार दीवारी में नहीं सुलझ सके तो मामले कोर्ट तक पहुंचे। 2020 तक एक हजार से नीचे केस थे लेकिन तीन साल में पति-पत्नी के बीच होने वाले विवाद बढ़ गए। केसों का अंबार लग गया है। महिला उत्पीड़न के साथ ही पति उत्पीड़न के केस भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं।
केस-1 कुटुंब न्यायालय ने रवि व ज्योत्सना (परिवर्तित नाम) का तलाक पत्नी की प्रताड़ना के आधार पर मान्य किया था। पति न्यायालय में पत्नी की क्रूरता साबित करने में कामयाब रहा जिसके चलते उन्हें तलाक मिल गया। हाईकोर्ट में यह मामला आपसी सहमति से सुलझा और पति ने तलाक के लिए 10 लाख रुपए दिए।
केस-2 राजकुमार (परिवर्तित नाम) ने कुटुंब न्यायालय में पत्नी की क्रूरता को आधार बताते हुए तलाक का केस दायर किया है। पति का आरोप है कि पत्नी उसे खाना नहीं देती है। कभी भी झगड़ना शुरू कर देती है। घर से भी बाहर भी निकाल देती है। इस केस में अभी सुनवाई चल रही है।
इस कारण बढ़ रहे हैं विवाद
– पति-पत्नी के बीच अविश्वास बढ़ा है। इस वजह से झगड़े बढ़े हैं। झगड़े इतने बढ़ रहे हैं कि ये घर में नहीं सुलझ रहे हैं।
– स्मार्टफोन ने ज्यादा अविश्वास बढ़ाया है।
– लड़की के माता-पिता का दखल बढ़ना।
ग्वालियर कुटुंब न्यायालय में ऐसे बढ़े मामले
वर्ष केस
2019 595
2020 626
2021 1212
2022 1799
2023 2446
पति क्रूरता के आधार पर मांग रहे तालाक
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में धारा 13 के तहत पति या पत्नी अपने साथी से तलाक ले सकता है। इसमें तलाक लेने के कई आधार बताए गए हैं जिसके तहत तलाक लिए जा सकते हैं। इस कानून की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से भी तलाक लेने का जिक्र किया गया है। हालांकि इसके अन्तर्गत शादी के एक साल बाद ही तलाक की अर्जी पारिवारिक न्यायालय में डाल सकता है। इस धारा में तलाक के लिए न्यायालय की शरण में गए दंपति को सुलह के लिए 6 महीने का समय देता है और अगर दोनों के बीच सुलह ही कोई स्थिति नहीं बनती है तो फिर तलाक हो जाता है।
तलाक लेने के क्या -क्या हो सकते हैं आधार
– पति या पत्नी में से कोई भी शादी के बाद विवाहेतर संबंध जीने लगे और शारीरिक संबंध बनाने लगे तो यह तलाक का आधार बन सकता है।
– शादी के बाद पति या पत्नी मानसिक या शारीरिक क्रूरता का बर्ताव करता हो।
– पति या पत्नी बिना किसी ठोस कारण के ही दो साल या उससे लंबे समय से अलग रह रहे हों तो तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं।
– दोनों पक्षों में से कोई एक हिंदू धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेता हो तो भी यह आधार बन सकता है।
– दोनों में से कोई एक पक्ष मानसिक रूप से बीमार हो और वैवाहिक संबंध चलाना मुश्किल हो तो यह तलाक का आधार बन सकता है।
– अगर दोनों में से कोई एक कुष्ठ रोग से पीड़ित हो।
– पति या पत्नी में से कोई एक संक्रामक यौन रोग से पीड़ित हो।
– अगर पति या पत्नी में से कोई घर-परिवार छोड़कर संन्यास ले ले।
– अगर पति या पत्नी में से कोई सात साल तक लापता हो तो इस आधार पर तालाक लिया जा सकता है।
– अगर शादी के बाद पति पति बलात्कार का दोषी पाया जाता हो।
तलाक का आधार बन रहा पत्नी की क्रूरता
काउंसिलिंग के दौरान देखने में आ रहा है कि अब पुरुष ज्यादा प्रताड़ित हैं। पत्नी की क्रूरता को आधार बनाकर तलाक का केस दायर कर रहे हैं। काउंसिलिंग में दोनों की सुलह की जाती है लेकिन दोनों मानने को तैयार नहीं होते हैं। – कमलेश शर्मा, वरिष्ठ काउंसलर कुटुंब न्यायालय, ग्वालियर
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