जम्मू-कश्मीरः बढ़े हुए मतदान पर अपने-अपने कयास
यात्रा की शुरुआत जम्मू-कश्मीर से हुई। देशवासियों की निगाह यहां के चुनाव पर इसलिए भी थी कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद सूबे में पहले आम चुनाव हुए। सूबे में एक दशक पहले दो धुर विरोधी राजनीतिक दलों ने मिलकर सरकार बनाई, चलाई और सरकार गिर गई। पिछले तीन साल से वहां विधानसभा भंग पड़ी है। कोई सरकार अस्तित्व में नहीं है। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव का महत्व और बढ़ गया क्योंकि परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर नए राजनीतिक रंग में निखर कर आया। कश्मीर में तीन नए राजनीतिक दल जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी अस्तित्व में आए। पुराने सियासी दल नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के साथी रहे पर घाटी में जुदा-जुदा चुनाव मैदान में उतरे। भाजपा ने जम्मू में तो राजनीतिक भाग्य आजमाया परंतु कश्मीर घाटी में हिम्मत नहीं जुटा पाई। बताया जाता है कि भाजपा ने अपनी पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस की पीठ पर हाथ रखा। अपनी पार्टी ने दो और पीपुल्स कांफ्रेंस ने एक लोकसभा सीट पर प्रत्याशी उतारे। कांग्रेस के पूर्व दिग्गज और पूर्व सीएम गुलाब नबी आजाद ने पहले अनंतनाग से चुनाव लड़ने की घोषणा की। उन्हें उम्मीद थी भाजपा उनका समर्थन कर सकती है। पर बात नहीं बनने पर उन्होंने चुनाव में उतरने का फैसला बदल लिया। पार्टी का अस्तित्व बनाए रखने के लिए अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे। यात्रा के दौरान अखनूर और आर एस पुरा के सीमावर्ती इलाके से लेकर डोडा, किश्तवाड़, अनंतनाग, पहलगाम, श्रीनगर, चरारे शरीफ, गांदरबल, पुलवामा, सोनमर्ग, बारामुला और गुलमर्ग तक समाज के हर तबके से रूबरू हुआ। घाटी के युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों के जोश को देखकर अहसास हो गया था कि चुनाव में अनुच्छेद 370 ही मुख्य मुद्दा रहने वाला है। मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी को एक ओर केन्द्र सरकार की योजनाओं के प्रति आमजन की सहमति के रूप में तो दूसरी ओर अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ जनता के गुस्से के रूप में देखा जा रहा है। फिलहाल कहना मुश्किल है कि केन्द्र में बनने वाली सरकार में कश्मीर की क्या भूमिका होगी। इतना जरूर कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम सूबे में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी इशारा देने वाले होंगे।