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Kanchanjunga Express train accident: ईद का जश्न छोड़ ट्रेन हादसे के शिकार यात्रियों को बचाने में जुट गए इस गांव के 150 लोग

Kanchanjunga Express train: कंचनजंगा ट्रेन एक्सीडेंट के घायल यात्रियों को बचाने के लिए सबसे पहले निर्मल जोत गांव के लोग घटनास्थल पहुंचे।

नई दिल्लीJun 18, 2024 / 05:45 pm

स्वतंत्र मिश्र

ईद उल-अज़हा का जश्न अभी परवान पर पहुंचा भी नहीं था कि कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन (Kanchenjunga Express Train Accident) को मालगाड़ी ने टक्कर मारी और चारों ओर चींखने, पुकारने और बचाओ की आवाजें आने लगी। ऐसी भयावह हालत में पीड़ितों की मदद के लिए सबसे पहले दौड़ने वालों में से निर्मल जोत गांव (Nirmal Jote village) के ही निवासी थे।ईद उल-अज़हा की नमाज अदा कर ली गई थी और उसके कुछ ही देर बाद सियालदह जाने वाली कंचनजंगा एक्सप्रेस के टक्कर की खबर सामने आ गई तो जश्न मनाना छोड़कर मानवता की पुकार पर 32 वर्षीय मो​हम्मद मोमिरुल यात्रियों की जान बचाने निकल पड़े। 17 जून को हुए ट्रेन दुघर्टना में 9 लोगों की मौत हो गई और करीब 40 लोग घायल हो गए।

वह नमाज अदा करके घर लौटा ही था कि तेज…

मोमिरुल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, ”मैं नमाज अदा करके घर लौटा ही था। घर के सभी लोग त्योहार का जश्न मनाने के मूड में थे और तभी हमने अचानक एक तेज़ चींख सुनाई दी। मैं अपने घर के पास रेलवे ट्रैक की ओर भागता हुआ पहुंचा तो देखा बहुत कुछ बर्बाद हो चुका था। पटरी से उतरे ट्रेन के डिब्बे देखे। मैंने मालगाड़ी के लोको पायलट को यात्री ट्रेन के पहिये के नीचे लेटे हुए देखा। मेरे पायलट तक पहुंचने से पहले ही वह दम तोड़ चुका था।”

निर्मलजोत के मुस्लिम ग्रामीणों ने यात्रियों की बचाई जान

मोमिरुल ने यात्रियों को बचाने के लिए जब गांव वालों को पुकारा तो उसके साथ निर्मल जोत गांव के 150 से अधिक निवासी भी इस मुहिम में जुट गए। ग्रामीण घायल यात्रियों को उठाकर पास के अस्पताल पहुंचे। कुछ यात्री जो कम घायल ​थे या जिनके होश उड़ गए थे, उन्हें गांव वाले अपने घर ले गए। इस घटना के गवाह रहे लोगों का कहना है कि घटनास्थल पर पुलिस, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और आपदा प्रबंधन टीमों को एक घंटे से अधिक समय लग गया।

बुजुर्ग घायल महिला पानी-पानी की रट लगाए जा रही थी…

वहीं तस्लीमा खातून ने बताया, “मैं त्योहार के लिए तैयार हो रही थी लेकिन इस हादसे की खबर लगते ही मैं दौड़ती हुई घटनास्थल पर पहुंची। मैंने पाया कि वहां एक बुजुर्ग महिला घायल पड़ी हुई थी और वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। वह रो रही थी और पानी-पानी की रट लगाए जा रही थी। वह असहाय महसूस कर रही थी। मैंने उसे बार-बार ढांढस बंधाया। कुछ घंटों बाद उनके रिश्तेदार सिलीगुड़ी से आए और उन्हें वापस ले गए।

‘बालासोर ट्रेन हादसे की याद हो आई’

तस्लीमा ने बताया, “मुझे पिछले साल हुई बालासोर ट्रेन दुर्घटना (Balasore Train accident) की याद हो आई लेकिन मैंने यह कभी भी नहीं सोचा था कि ऐसा दर्दनाक मंजर मेरे ही आंखों के आगे घटेगा।”

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