पिछले दस साल से भाजपा ने भी अपने प्रतिद्वंद्वियों का अनुसरण ही किया। इसी का नतीजा है कि मेरे से अलग हुए लद्दाख में इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को मतदाताओं का भरोसा जीतने में पसीने छूट रहे हैं। स्थानीय मांगें पूरी न होने के कारण स्थानीय संगठन के प्रत्याशी ने प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के होश उड़ा रखे हैं।
क्षेत्रफल के लिहाज से लद्दाख देश का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की गोद में इसका क्षेत्र 173 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसमें दो जिले लेह और करगिल शामिल हैं। 1.84 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर लेह में 88 हजार और करगिल में 94 हजार मतदाता हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार चुनावी रण का फैसला करगिल की जनता करने वाली है। इसकी मुख्य वजह स्थानीय मसलों का हल न निकल पाना बताया जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी लेह से हैं। उनको चुनौती दे रहा तीसरा प्रत्याशी करगिल से है। इसलिए यह चुनाव लेह बनाम करगिल में तब्दील होता दिख रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी लेह से, करगिल से समर्थन नहीं
गठबंधन की शर्तों में नेशनल कांफ्रेंस ने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी है। कांग्रेस ने टी. नामग्याल को प्रत्याशी बनाया है। नामग्याल लेह से हैं। नेशनल कांफ्रेंस ने अपनी करगिल इकाई को नामग्याल के लिए प्रचार करने का संदेश भिजवाया पर पार्टी कार्यकर्ताओं ने संदेश का पालन करने से इंकार कर दिया। कुछ ही दिनों में विरोध इतना बढ़ा कि पार्टी की करगिल इकाई ने इस्तीफा देकर कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं। ऐसा ही घटनाक्रम कांग्रेस की करगिल शाखा में भी घटित होने से नामग्याल के लिए करगिल से वोट जुटाना बड़ी चुनौती बन गई है। कांग्रेस हाईकमान ने नामग्याल को उनके हालात पर छोड़ दिया है। कांग्रेस की तरफ से अभी तक किसी स्टार प्रचारक के लद्दाख का दौरा नहीं करने से भी नामग्याल को प्रचार के मोर्चे पर काफी जूझना पड़ रहा है।भाजपा के लिए भी आसान नहीं राह
पाकिस्तान से सटी नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थित इस सीट से संसद तक पहुंचने का सफर भाजपा प्रत्याशी के लिए भी आसान नहीं दिख रहा। भाजपा ने वर्तमान सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल का टिकट काटकर इस बार ताशी ग्यालसन को नए चेहरे के रूप में मैदान में उतारा है। टिकट कटने से नाराज नामग्याल खुलकर ग्यालसन के प्रचार में शरीक होने से बचते रहे हैं। उनके समर्थकों के भी खामोशी धारण करने से पार्टी हाईकमान ने केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को लद्दाख भेजकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की। रिजिजू के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री वी.के. सिंह ने करगिल जिले का दौरा कर पूर्व सैनिकों से ग्यालसन के लिए समर्थन मांगा। पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को विशेष तौर पर करगिल के मुस्लिम बहुल इलाकों को साधने की जिम्मेदारी दी गई। संभवत: लद्दाख देश के चुनिंदा लोकसभा क्षेत्रों में से है जहां चुनाव परिणाम में राष्ट्रीय मुद्दों की जगह स्थानीय मसले अहम भूमिका निभाने वाले हैं।इसलिए बने त्रिकोणीय संघर्ष के हालात
भाजपा यहां पर प्रधानमंत्री की पिछले दस साल की उपलब्धियों और लद्दाख संसदीय क्षेत्र में हुए विकास कार्यों को गिनाकर वोट मांग रही है। कांग्रेस भाजपा की नाकामियों को निशाना बना रही है। इस बीच स्थानीय मामलों को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाकर हाजी हनीफा जान ने इस चुनावी रण को त्रिकोणीय बना दिया है। लद्दाख के प्रमुख मुद्दों में पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल करना, करगिल के लिए स्थानीय जनसेवा आयोग बनाना तथा रोजगार बढऩा शामिल हैं। लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) पिछले चार वर्षों से इन मुद्दों पर हाजी हनीफा खान की अगुवाई में संघर्ष कर रही हैं। केन्द्र सरकार ने पहले इन मांगों के प्रति सहानुभूति दिखाई थी। इस वर्ष मार्च में केन्द्र सरकार के मुकर जाने पर लद्दाख की जनता ठगा हुआ महसूस कर रही है। इसके चलते केडीए और एलएबी ने हाजी हनीफा जान को संयुक्त रूप से अपना उम्मीदवार बना चुनाव मैदान में उतार दिया। हनीफा जान करगिल से हैं। जनता से जुड़े मामलों को लेकर हनीफा को लेह से भी मतदाताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद है। लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। वर्ष 1967 से अब तक हुए आम चुनाव में कांग्रेस 6 बार यह सीट जीत चुकी है। नेशनल कांफ्रेंस दो बार और निर्दलीय तीन बार सांसद चुने गए। भाजपा पिछले दस साल से इस सीट पर काबिज है। भाजपा हैट्रिक लगाने के लिए मुख्य मुकाबला कांग्रेस से मान रही है। कांग्रेस को सारा जोर अपने और नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं की ओर से पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई में लगाना पड़ रहा है। ऐसे राजनीतिक हालात में हाजी हनीफा जान का राजनीति में उतरना लद्दाख के मतदाताओं को कितना पसंद आया, यह 4 जून को चुनाव परिणाम आने पर पता चलेगा।