एक्सपोसैट सैटेलाइट की लॉन्चिंग से नए साल की शुरुआत करने के बाद इसरो अब बदलते मौसम पर नजर रखने के लिए इनसेट-3डीएस सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह उपग्रह सबसे एडवांस रॉकेट ‘जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल’ (जीएसएलवी-एफ 14) के जरिए फरवरी के पहले हफ्ते में लॉन्च किया जाएगा।
इसरो और आइएमडी का संयुक्त मिशन
इनसेट-3 डीएस इसरो और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) का संयुक्त मिशन है। देश के अलग-अलग हिस्सों में मौसम बदलता रहता है। कहीं बारिश होती है तो कहीं मौसम सूखा रहता है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में कई बार चक्रवाती तूफान आते हैं। जलवायु परिवर्तन की समस्या से भारत भी जूझ रहा है। ऐसे में अंतरिक्ष में सैटेलाइट के जरिए मौसम के छोटे से छोटे बदलाव पर नजर रखी जा सकती है। इनसेट-3डीएस अंतरिक्ष में क्लाइमेट ऑब्जर्वेटरी के रूप में काम करेगा।
दो उपग्रह पहले से कर रहे हैं काम
जलवायु पबेंगलूरु. एक्सपोसैट सैटेलाइट की लॉन्चिंग से नए साल की शुरुआत करने के बाद इसरो अब बदलते मौसम पर नजर रखने के लिए इनसेट-3डीएस सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह उपग्रह सबसे एडवांस रॉकेट ‘जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल’ (जीएसएलवी-एफ 14) के जरिए फरवरी के पहले हफ्ते में लॉन्च किया जाएगा।
परिवर्तन पर नजर रखने के लिए इसरो के दो उपग्रह इनसेट 3डी और इनसेट 3डीआर पहले से अंतरिक्ष में हैं। इसरो के अधिकारियों के मुताबिक पहले इनसेट-3डीएस सैटेलाइट को इसी महीने लॉन्च किया जाना था, लेकिन फिलहाल इसे लॉन्च व्हीकल से जोडऩे का काम चल रहा है। अब इसे फरवरी के पहले हफ्ते में लॉन्च किया जाएगा। लॉन्चिंग की तारीख जल्द तय किए जाने के आसार हैं।
जीएसएलवी भेजेगा
करीब आठ महीने में जीएसएलवी से यह पहली लॉन्चिंग होगी। यह रॉकेट तीनों स्टेज के लिए ‘क्रायोजेनिक लिक्विड प्रोपेलेंट्स’ का इस्तेमाल करता है। लिक्विड ईंधन का इस्तेमाल जटिल होता है, लेकिन यह ज्यादा क्षमता के साथ लिफ्ट-ऑफ की ताकत देता है। भारत का दूसरा रॉकेट पीएसएलवी है, जिसमें ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है।