रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह आने वाले कुछ ही वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था 11 ट्रिलियन डॉलर का लाभ ले सकती है। इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार प्रोडक्ट्स का न्यूनतम प्रयोग तथा ‘एक्सपोर्ट डिकॉर्बनाइजेशन’ का उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे लिए आने वाले दस वर्ष बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसमें हम जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले लाभ-हानि को अपने हिसाब से बदल सकते हैं। आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का सभी पर प्रभाव होगा परन्तु भारत इस मामले में हमें राह दिखा सकता है और अपनी अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार दे सकता है।
डेलोइट इंडिया के चेयरपर्सन अतुल धवन ने कहा कि भारत आने वाले समय में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चल रहा है। इसके लिए भारत को घरेलू और विदेशी निवेशकों की मदद के साथ-साथ हमारी महत्वाकांक्षाओं को भी ध्यान रखना होगा। यदि क्लाइमेट चेंजिंग को रोकने के लिए अब कोई एक्शन नहीं लिया जाए तो इस सदी के अंत तक पूरी पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इससे ग्लेशियर पिघल जाएंगे और समुद्र किनारे बसे बहुत से शहर और महानगर पानी में डूब जाएंगे। ऐसे में लोगों के सामने रहने और जॉब की व्यवस्था करने की बड़ी समस्या हो जाएगी।
अगले पचास वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण जो उद्योग सर्वाधिक प्रभावित होंगे उनमें सर्विस इंडस्ट्री (सरकारी एवं निजी), मेन्यूफैक्चरिंग, रिटेल एंड टूरिज्म, कंस्ट्रक्शन तथा ट्रांसपोर्ट प्रमुख हैं। वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था में यही पांच उद्योग लगभग 80 प्रतिशत सहयोग देते हैं।
डेलोइट के अनुसार वर्ष 2070 तक इन पांचों उद्योगों में सालाना 1.5 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का नुकसान होने की उम्मीद है। परन्तु यदि सरकारें और इंडस्ट्रीज सभी मिलकर आने वाले वर्षों में बोल्ड लेकिन जरूरी कदम उठाए तो इस स्थिति को बदल कर इसका फायदा भी उठाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में वर्ष 2050 तक धरती का तापमान केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ेगा जो जलवायु परिवर्तन के असर को न्यूनतम कर देगा।
डेलोइट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हमें दुनिया को एक नई और कम एमिशन वाली टेक्नोलॉजी की दिशा में बढ़ना होगा ताकि ग्लोबल वार्मिंग के इफेक्ट को कम से कम किया जा सके। ऐसा करके हम नुकसान की जगह फायदा ले सकेंगे।