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Earthquake Flood Alert: बड़ी तबाही का कर रहे इंतजार! IMD और आपदा प्रबंधन विभाग ही नहीं प्रकृति भी कर रही बार-बार अलर्ट

Monsoon Natural disaster: मौसम विभाग और एकस्पर्ट ही नहीं खुद कुदर्त भी लगातार अलर्ट जारी कर रहा है।

नई दिल्लीJun 30, 2024 / 07:22 am

Anish Shekhar

Earthquake Flood Alert: मानसून की दस्तक के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों से विनाश की तस्वीरें सामने आने लगी है, लेकिन ना तो यह हालात पहली बार बने है और ना ही पिछले कई सालों में यह हालात बदले हैं। फिर चाहे बात साल 2013 में केदारनाथ त्रास्दी हो या फिर साल 2019 में प्रयागराज में आई भीषण बाढ़ हो, या इस साल असम सहित पूर्वोत्तर भी प्राकृतिक आपदा के दंश से बच नहीं सका। साल दर साल एक सी ही तस्वीर देश के अलग-अलग हिस्सों से निकल कर समाने आती रही है, लेकिन ना तो सरकार की ओर से इसे लेकर कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं और ना ही प्रशासन के कानों में जूं रेंगती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और हिमालय में अनियोजित मानवीय हस्तक्षेपों ने पहाड़ियों की आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति और मानव जीवन की हानि में कई गुना वृद्धि हुई है। मौसम विभाग और एकस्पर्ट ही नहीं खुद कुदर्त भी लगातार अलर्ट जारी कर रहा है।

पिछले कुछ सालों में हुई बड़ी घटनाएं

2019 में, मानसून के मौसम में भारी बारिश हुई और 25 वर्षों में सबसे अधिक मानसूनी बारिश हुई, जिससे बाढ़ आई और कम से कम 2.5 मिलियन लोग विस्थापित या घायल हुए।
2021 में, गोवा और महाराष्ट्र राज्यों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और जानलेवा बाढ़ आई।

2023 में, मानसून की बारिश ने 428 से अधिक लोगों की जान ले ली, जिनमें से ज़्यादातर हिमाचल प्रदेश में थे, और 1.42 बिलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ।
भारत में मानसून के मौसम में भूस्खलन और बाढ़ आना आम बात है, और वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अधिक अनिश्चित होता जा रहा है।

विशेषज्ञों ने प्रकृति विनाश की दी चेतावनी

जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है और भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाएँ लगातार हो रही हैं।
अनियोजित निर्माण: खराब योजना, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और अनियंत्रित विकास प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के जोखिम को बढ़ा रहे हैं।

पर्यावरण की उपेक्षा: पर्यावरण संबंधी चिंताओं की अनदेखी करना, विशेषज्ञों से परामर्श न करना और स्थिरता पर औद्योगिक हितों को प्राथमिकता देना पारिस्थितिकी क्षरण में योगदान दे रहा है।
भूस्खलन और बाढ़: हिमालयी क्षेत्र भूस्खलन और बाढ़ के लिए प्रवण है, जो भूभाग और भारी वर्षा के कारण विनाशकारी हो सकता है।

सरकारी उदासीनता: अपर्याप्त आपदा तैयारी, प्रभावी शासन की कमी और विशेषज्ञों की चेतावनियों पर अपर्याप्त प्रतिक्रिया जोखिम को बढ़ा रही है।
Monsoon Natural disaster:

जलवायु परिवर्तन का उत्तराखंड और हिमाचल पर पड़ा रहा प्रभाव

-राज्यों में अचानक बाढ़ और भूस्खलन, जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान और मानव हताहत हुए हैं।
-मानसून के पैटर्न में बदलाव, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में बारिश बढ़ गई और अन्य में सूखा पड़ गया।
-तापमान में वृद्धि, जिसके कारण ग्लेशियरों के पिघलने में वृद्धि हुई।
-अधिक वर्षा, वनों की कटाई और निर्माण के कारण कटाव का जोखिम बढ़ गया।
-जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और मानव कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से बचने क्या कदम उठाएं

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: आसन्न आपदाओं के बारे में लोगों को सचेत करने के लिए प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करें।

आपदा-प्रतिरोधी निर्माण: ऐसी संरचनाएँ बनाएँ जो भूकंप, चक्रवात और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकें।
पर्यावरण संरक्षण: प्राकृतिक आवासों, जंगलों और आर्द्रभूमि की रक्षा करें जो आपदाओं के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं।

जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने के लिए डिज़ाइन किए गए बुनियादी ढाँचे में निवेश करें।
आपदा तैयारी योजनाएँ: आपदा तैयारी योजनाएँ विकसित करें और नियमित रूप से उनका अभ्यास करें।

जन जागरूकता: लोगों को आपदा जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करें।

निकासी अभ्यास: तैयारी सुनिश्चित करने के लिए नियमित निकासी अभ्यास आयोजित करें।
संधारणीय भूमि उपयोग: भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए संधारणीय भूमि उपयोग प्रथाओं को अपनाएँ।

मौसम पूर्वानुमान: आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए मौसम पूर्वानुमान में सुधार करें।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: आपदा प्रबंधन में ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करें।

याद रखें, प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए तैयारी बहुत ज़रूरी है!

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