Supreme Court के फैसले का दिया हवाला
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि विवाहित व्यक्तियों के बीच लिव-इन संबंध व्यभिचार और द्विविवाह के समान हैं, इसलिए गैर-कानूनी हैं। कोर्ट ने कहा कि विवाह भारतीय समाज में आवश्यक सामाजिक संबंधों में से एक है। इसे स्थिर समुदाय के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। विवाहित लोगों के घर से भागकर लिव-इन में रहने से न केवल परिवार की बदनामी होती है, सामाजिक ताना-बाना भी बिगड़ता है।
‘सम्मान से जीने का हर कोई अधिकारी’
याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिकाएं दायर कर जीवन और स्वतंत्रता के लिए परिजनों से सुरक्षा की मांग की थी। परिजन उनके संबंधों का विरोध कर रहे थे। कोर्ट को पता चला कि याचिकाकर्ताओं की उम्र 40 साल से अधिक थी और पहले से शादीशुदा होने के बाद लिव-इन रिलेशन में थे। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति, सम्मान से जीने का अधिकार है। ऐसी याचिकाओं को अनुमति देने से द्विविवाह को बढ़ावा मिलेगा और दूसरे पति/पत्नी तथा बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन होगा।