‘मोदी विद ट्राइबल्स’ से चर्चा में आए थे धवल
भाजपा प्रत्याशी धवल पटेल चर्चा में तब आए थे जब उन्होंने ‘मोदी विद ट्राइबल्स’ किताब लिखी। धवल पटेल के लिए मजबूत पक्ष यह है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष सी.आर. पाटिल का करीबी होने का फायदा मिलने की उम्मीद है। इस कारण से उन्हेें स्थानीय संगठन से भरपूर सहयोग मिल रहा है। वे चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के मॉडल और आदिवासियों के लिए चल रही योजनाओं को सामने रख रहे हैं।
मौजूदा विधायक अनंत की आदिवासियों में पैठ
कांग्रेस प्रत्याशी अनंत पटेल वांसदा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। लगातार दो बार जीतकर सीआर पाटिल के गढ़ माने जाते नवसारी जिले की एकमात्र सीट पार्टी के खाते में डाल चुके हैं। उनकी आक्रामक छवि के दम पर ही कांग्रेस उन्हें लोकसभा चुनाव में भी आजमा रही है। पार-तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट के विरोध में उन्होंने आदिवासियों के प्रदर्शन का सफल नेतृत्व किया। धरमपुर और कपराडा में भी उनकी पैठ दिखती है। ये उनके मजबूत पक्ष भी हैैं। गांवों में पेयजल तो शहर में औद्योगिक विकास है मुद्दा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की कम उपलब्धता, खराब सडक़ें, बेरोजगारी और महंगाई यहां के अहम मुद्दे हैं तो शहरी क्षेत्रों के मतदाता औद्योगिक और मूलभूत ढांचे के विकास की बात करते हैं। नवसारी जिले का वांसदा, डांग जिले का डांग और वलसाड जिले के वलसाड, धरमपुर, पारडी, कपराड़ा एवं उमरगाम विधानसभा क्षेत्र इसका हिस्सा हैं। वांसदा में कांग्रेस और बाकी छह में भाजपा काबिज है।
आदिवासियों के नाम पर सियासत, विकास से वंचित रखा
आदिवासियों के बीच शिक्षा की कमी साफ झलकती हैै। वलसाड़ और धरमपुुर के बीच वांकल गांव से छोटी सडक़के जरिए डुलसाड़ पहुुंचने टीन शेड वाले एक कच्चेे घर में रमाबाई अपने 21 वर्षीय पोतेे पर नाराजगी व्यक्त कर रही हैैं, क्योंकि वह दो दिन पहले ही पड़ोसी गांव की एक 19 वर्षीय युवती को अपने घर ले आया है। दादी कहती हैं कि जब तक घर-गृहस्थी चलाने लायक काम नहीं करेगा तब तक वे पोते को शादी नहीं करने देंगे, भले ही दोनों एक साथ रह रहे हों। उनके पोते ने आठवीं कक्षा भी पास नहीं की हैै और दिहाड़ी का काम करता है।
आदिवासियों की हालत में सुधार नहीं
वलसाड़ में ऑटो चला रहे रमेशभाई पटेल कहते हैैं कि राजनीति ने सबकुछ किया हैै, लेकिन अभी तक आदिवासियों की हालत में सुधार नहीं हो पाया है। वांकल की अनिता पटेल कहती हैैं कि विकास हो रहा है, लेकिन महंगाई भी बढ़ रही है। हम चाहते हैैं कि या तो आमदनी बढ़े या महंगाई कम हो जाए। दर्जी का काम करने वाले धर्मेशभाई कहते हैैं कि कोई कुुछ भी कहे, लेकिन आएगा तो मोदी ही, क्योंकि उन्हें लगता है कि विपक्षी दल एकजुट नहीं हैैं।
बेरोजगारी यहां का बड़ा मुद्दा
पहली बार मतदान को लेकर उत्साहित 21 वर्षीय निकुंज ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी है और किराने की दुकान में परिवार वालों का हाथ बंटाते हैं, आगे पढ़ाई क्यों नहीं की यह पूछने पर कहते हैं कि काम करेंगे तो पैसा मिलेगा। पढऩे वालों को भी तो रोजगार नहीं मिल रहा हैै। दुुलसाड़ गांव की तीन उम्रदराज महिलाएं हाथ में लकडिय़ां बांधने को रस्सियां लिए जा रही हैं। पूछने पर देेवीबेन कहती हैैं कि वे औैर उनके जैसे कई ग्रामीण हर दूसरे-दिन आसपास के क्षेत्रों से सूखी लकडिय़ांं लाती हैं, ताकि घर का चूल्हा जल सके। उन्हें फ्री सिलेंडर मिला था, लेेकिन उसे उनका बेटा धरमपुर ले गया, जहां वह काम करता है। चंचल कहती हैं कि हमारे पास पैसों की कमी रहती है। कभी कोई दिहाड़ी का काम मिल जाता है। कभी नहीं। वहीं सविता कहती हैैं कि कोई भी नेता ने हमारे गांव का विकास नहीं किया। न तो पीने का पानी है औैर न ही अच्छी सडक़ें हैं।
शराबबंदी, फिर भी हो रही बर्बादी
धरमपुर रोड़ के किनारे अंतरराष्ट्रीय बेेबरीज कंपनी के परिसर के आसपास बसी आबादी में रहने वाले विकास पटेल कहते हैं कि सबसे बड़ी समस्या ऐसा काम मिलने में है, जिसमें निश्चित वेतन मिले। सभी को दिहाड़ी करनी पड़ती हैै। आदिवासियों में शराब के नशे ने भी परिवारों को बर्बाद किया है। कहने को तो शराबबंदी है, लेकिन गांव-गांव, कस्बे-कस्बे में शराब मिल रही है। पारडी विधानसभा में वापी के रहने वाले आनंद पटेल कहते हैं कि वे इस बार सरकार बदलने के लिए वोट करेंगे, क्योंकि दस साल बहुत देख लिया है। कुछ ज्यादा बदलाव तो नहीं हुआ, बल्कि महंगाई बढ़ गई है। नानापोंडा के किसान राजकमल कहते हैैं कि 1957 में बनी इस सीट के साथ यह मिथ भी जुड़ा है कि अब तक जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीता है, उसी पार्टी ने दिल्ली में केंद्र सरकार बनाई है। जो निर्णायक भूमिका में, उन्हीं को नहीं मिलता रोजगार बेशक वलसाड़ में आदिवासी मतदाता निर्णायक हैं, लेकिन पारडी, वलसाड, उमरगाम मेें अच्छी खासी संख्या में प्रवासी मतदाता हैं जो किसी भी प्रत्याशी की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां करीब ढ़ाई लाख प्रवासी मतदाता हैैंं, जो राजस्थान, महाराष्ट्र, यूपी और बिहार मूल के हैैं। 2001 से 11 के बीच में जनसंख्या 22 प्रतिशत तक बढ़ी हैै। पूरेे देेश से मानो वलसाड़ में रोजगार के लिए लोग खिंचे चले आते हैं। जबकि आदिवासियों को रोजगार तलाशने में पसीने छूट रहे हैं। उन्हें अपने गांवों के आसपास ही बागानों, खेतों में काम करके गुजारा करना पड़ता है। ऐसे में इन दोनों वर्गों को साधना भाजपा औैर कांंग्रेस दोनों के लिए चुुनौती है।