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Ground Report: देश में ‘वहशियों’ से बहन-बेटियों को बचाने के लिए खर्च कर दिए 5213 करोड़ रुपए, फिर भी नहीं बदली तस्वीर

Ground Report: दिल्ली में बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटना के बाद 11 साल पहले बना निर्भया फंड भी अभी तक बहन-बेटी को निर्भय करने के लिए कारगर नहीं हो पाया है।

नई दिल्लीSep 02, 2024 / 10:15 am

Shaitan Prajapat

Ground Report: दिल्ली में बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटना के बाद 11 साल पहले बना निर्भया फंड भी अभी तक बहन-बेटी को निर्भय करने के लिए कारगर नहीं हो पाया है। सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने के उपायों के लिए बने इस फंड से करीब 5213 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि राज्यों को आवंटित की जा चुकी है लेकिन हालात में ज्यादा परिवर्तन नहीं दिखता। ‘पत्रिका’ ने राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ में इस फंड से हुए कामों की जमीनी हकीकत जांची। इसमें सामने आया कि महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन की बसोंं में पैनिक बटन या तो लगे नहीं या काम नहीं कर रहे, थानों में महिला डेस्क के लिए सुविधायुक्त कमरा बना है लेकिन वहां पुलिस स्टाफ काम कर रहा है। रेलगाड़ी में महिलाओं के लिए इमरजेंसी रेस्पांस सिस्टम काम नहीं कर रहा। पीडि़त या प्रभावित महिलाओं के लिए वह स्टॉप सेंटर मुसीबत के समय बंद मिलते हैं। पीड़िताओं को मुआवजे के लिए और एफएसएल सुविधाएं अपने सरकारी ढर्रे से चल रही है जिसमें तेजी लाने के उपाय नहीं किए गए हैं। अधिकारियों से बातचीत में निर्भया फंड से खर्च के आंकड़े गिनाए जाते हैं लेकिन खर्च की गुणवत्ता पर वे चुप्पी साध लेते हैं।

इन प्रमुख कामों के लिए राशि आवंटित (राशि करोड़ रुपए में)

इमरजेंसी रेस्पांस – 364
साइबर अपराध – 200
वन स्टॉप सेंटर – 853
महिला हैल्प डेस्क – 158
आठ बड़े शहरों में सेफ सिटी प्रोजेक्ट – 1577
पॉक्सो की फास्ट ट्रेक अदालतें – 824
एफएसएल सुविधाएं – 183
पीडि़ता मुआवजा – 200
एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट – 113
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खर्च का हिसाब –

कुल आवंटन – 7212 करोड़ रुपए
राज्यों को भेजे – 5213 करोड़ रुपए

मध्यप्रदेश: बजट का पूरा उपयोग नहीं, पैनिक बटन शो-पीस

निर्भया फण्ड से मिले 190 करोड़ रुपए से 2022 तक केवल 94 करोड़ रुपए खर्च हो पाए हैं। दस लाख से ज्यादा वाहनों में पैनिक बटन लगवाए लेकिन ज्यादातर वाहनों में ये पैनिक बटन शो-पीस बने हुए हैं। प्रदेशभर में मॉनिटरिंग के लिए कंट्रोल कमांड सेंटर भी बनाया गया लेकिन कारगर नहीं। थानों में ऊर्जा डेस्क के नाम से महिला डेस्क बनी है। वन स्टॉप सेंटर जिलों में संचालित किया जा रहा है। जबलपुर में एनजीओ की मदद से महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाए जा रहे हैं। पॉक्साे केस के लिए नए कोर्ट के बजाय मौजूदा अदालतों को ही अधिसूचित किया गया है।
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राजस्थान: खानापूर्ति के काम, फोन कहां जाता है पता नहीं

निर्भया फंड से खर्च खानापूर्ति तक सीमित, 2024-25 के लिए तो बजट ही आवंटित नहीं हुआ। बसों में पैनिक बटन लगाए गए लेकिन ये मैसेज किसके पास पहुंचना है इसकी कोई व्यवस्था ही नहीं है। चालक-परिचालक व यात्री को बटन की जानकारी भी नहीं। पैनिक बटन मैसेज का कंट्रोल रूम बना ही नहीं। थानों में महिला डेस्क शुरू लेकिन नफरी की कमी के चलते अधिकतर डेस्क दिखावा बनी हुई है। मानव तस्करी विरोधी यूनिट के लिए संसाधन खरीदे गए हैं। जिला मुख्यालयों पर वन स्टॉप सेंटर खोले गए हैं लेकिन रात्रि में ये बंद रहते हैं। पाॅक्सो फास्ट ट्रैक कोर्टों की संख्या कम है।

तमिलनाडु: सिर्फ 10 फीसदी राशि हुई खर्च

निर्भया भंड से 2022 तक 324 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया लेकिन इसमें से केवल10.7 प्रतिशत राशि उपयोग किया गया है। इसमें से भी चेन्नई पुलिस द्वारा महिला पुलिस गश्ती सुविधाओं और कमांड सेंटरों के लिए आवास बनाने के लिए 18.54 करोड़ रुपए खर्च किए गए। समाज कल्याण विभाग ने 181 महिला हेल्पलाइन और मुसीबत में घिरी महिला के लिए वाहन सहायता प्रदान शुरू की है। फिलहाल सभी थानों में महिला डेस्क की व्यवस्था नहीं है। ग्रामीण व अर्द्धशहरी क्षेत्रों में अधिकतर सुविधाएं जमीन पर उपलब्ध नहीं हैं।

पश्चिम बंगाल: खर्च भरपूर, जमीन पर सुरक्षा नहीं

निर्भया फंड से मिले 104.72 करोड़ में से से 95 करोड़ रुपए खर्च किए लेकिन महिला सुरक्षा में बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। सार्वजनिक वाहनों में पैनिक बटन या वाहनों को ट्रैक करने वाले सिस्टम की कमी है। सरकारी अस्पतालों में सीसीटीवी की कमी है। सभी पुलिस थानों में महिला डेस्क की कमी। हाल ही आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर से बलात्कार व हत्या के बाद यह कमियां उजागर हो चुकी हैं। पोस्को फास्ट ट्रैक कोर्टाें की संख्या भी काफी कम हैं।

छत्तीसगढ़: जागरुकता-प्रशिक्षण-मानव तस्करी रोकने पर जोर

छत्तीसगढ़ को निर्भया फंड से 2023 तक करीब 83 करोड़ रुपए जिसमें से 53 करोड़ रुपए खर्च किए गए। प्रशासन का महिलाओं की जागरुकता, प्रशिक्षण और मानव तस्करी रोकने पर जोर है। प्रदेश के 513 थानों में महिला हैल्प डेस्क बनाए गए हैं जहां महिला पदस्थापित हैं। बलात्कार व उत्पीड़न की घटनाओ की जांच के लिए विशेष यूनिट (आईयूसीएडब्ल्यू) का गठन किया गया है। आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा संभाग में मानव तस्करी की घटनाओं में कमी आई है। दुर्ग जिले में बहन-बेटियों की सुरक्षा को लेकर स्कूल-कॉलेज में जागरुकता अभियान चलाए जा रहे है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए अभिव्यक्ति एप भी लॉन्च किया गया है।

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