गाजियाबाद से निकलकर आप गढ़मुक्तेश्वर पार भी नहीं कर पाते हैं कि सड़क के दोनों तरफ गन्ने की फसल आपका स्वागत करती है। सूरज की इस तपिश में जब तापमान त्राहिमाम करा रहा है तो वह अपने हिस्से का पानी लेकर हरे-भरे खड़े हैं क्योंकि इस फसल की जड़ अन्य फसलों के मुकाबले थोड़ी गहरी हैं। किसानों को आस है कि इस बार गन्ने की फसल अच्छी व रसदार होगी। गर्मी के कारण कीड़े और खरपतवार कम होंगे। किसान यह भी मानते हैं कि गर्मी से फसल कई जगह झुलस भी गई है लेकिन कुल मिलाकर फसल अच्छी होगी।
रुहेलखंड के इस अंचल में सियासत का स्वभाव भी कुछ इस तरह से ही दिखाई दे रहा है। एक नहीं, दो बार विधानसभा और दो बार लोकसभा चुनाव में लगातार परचम लहरा चुकी भाजपा की जड़ें यहां गहरी दिख रही हैं। 2022 का दौर याद करिए। जब गन्ना किसानों ने सरकार की ईंट से ईंट बजा दी थी। भाजपा सरकार को मेरठ से दिल्ली तक जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था। इस बार विरोध के वे सुर और स्वर दोनों ही कहीं दिख नहीं रहे हैं। नाराजगी तो कई जगह पर है। लहजा भी तल्ख है, लेकिन बगावत तो बागपत में भी नजर नहीं आ रही है।
सियासी खेत में इस बार खाद बदल गई है और पानी का भी रुख बदला नजर आ रहा है। जयंत चौधरी, जो 2022 में सपा के साथ थे, वह 2024 में पाला बदल चुके हैं। ऐसे में यहां जो कमी थी, जयंत चौधरी उसकी भरपाई कर रहे हैं। राकेश टिकैत भी स्थिर हैं। चंद्रशेखर आजाद रावण भी अब वाई सुरक्षा के साथ हैं। ऐसे में नगीना में यह कदम बसपा को परेशान कर रहा है। पहले चरण में नगीना सुरक्षित सीट है।
मुददों की अगर बात करें तो प्रधानमंत्री पहले दो चरण में बेबाकी से विकास, सेवा और सुरक्षा को धार देते नजर आए। ऐसे में पहले और दूसरे चरण की 16 सीटों पर रुहेलखंड का स्वभाव भले ही रूखा नजर आया हो लेकिन इरादे साफ नजर आते हैं। बुलंदशहर के इरादे बुलंद नजर आ रहे हैं तो अब अलीगढ़ में देखना होगा कि किसका ताला बंद होता है। बाकी जिला गजियाबाद का परिणाम क्षेत्रीय वर्चस्व की एक बार फिर से नई कहानी लिखेगा। इस सब के बीच एक बात तो साफ है कि यह जंग इतनी आसान भी नहीं है। सपा और कांग्रेस की जातीय पेशबंदी ने इस क्षेत्र में भाजपा को पसीने ला दिए हैं।
बरेली के लिए यात्रा कर रहे रामेश्वर शाक्य कहते हैं कि देश में सर्वाधिक गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश करता है और उसमें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा। यहां लोग भी गन्ने की तरह ही बाहर से कडक़ और दिल से मीठे व नरम होते हैं। रही बात इस चुनाव की तो यहां न तो खेत बदला है और न ही यहां की खेती तो ऐसे में मिठास यदि कम होती भी है तब भी चाशनी तो पूरी ही बनेगी। इस बात में कहीं कोई कसर नहीं है। भाई जी, एक बात और बता दें यही फसल है जिसे किसान जब चाहे तब लठ्ठ भी बना देता है… बाकी आप समझदार।
हमारे यहां एक बात और है जब गुड़ बनाने की कड़ाही चढ़ती है तो एक दो बाल्टी गन्ने का रस हम पड़ोसी के यहां भी पहुंचा देते हैं। यही हाल सीटों का भी रहने वाला है। हर चरण की चुनावी कड़ाही में से एक दो सीटें तो जाएंगी। इस अंचल में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पडऩे वाला है। हां, कुछ खरपतवार साफ किए जाएंगे क्योंकि गुड़ के लिए गन्ने का रस साफ चाहिए होता है और इसके लिए गन्ने को छीला जाता है। अब गर्मी है तो कुछ सीटों पर भाजपा को तो कुछ सीटों पर सपा-कांग्रेस को झुलसना तो पड़ेगा ही।
सियासत के जानकार कहते हैं कि वैसे इस बार सहारनपुर और कैराना में खाद-पानी थोड़ा कम रहा लेकिन यह बहुत चिंता की बात नहीं है। इस बार अमरोहा में भी भाजपा को आम का स्वाद मिल सकता है। बाकी रही बात ब्रज क्षेत्र की तो मेरठ की चीनी, मथुरा तक पहुंचते-पहुंचते पेड़े में बदल ही जाएगी। राजनीति में गर्मी हो रही तो कुछ प्रभाव तो पड़ेगा ही। पहले दो चरण की 16 सीटों में से चार से पांच सीटों पर विपक्ष का समीकरण सटीक दिख रहा है लेकिन झुलसा कितना पाते हैं यह तो 4 जून को ही पता चलेगा। तब तक शायद मौसम के साथ सियासत की गर्मी भी कुछ कम हो जाए।
उत्तर प्रदेश के पहले दो चरण
पहले चरण की 8 सीटें – सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीतदूसरे चरण की 8 सीटें – अमरोहा, मेरठ, बागपत, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और गाजियाबाद
भाजपा और एनडीए
मोदी फैक्टर :
2014 में बदलाव और 2019 में राष्ट्रवाद पर वोट देने के बाद 2024 में ऐसा कोई कारण नहीं दिख रहा है कि एक दशक में चार बार वोट करने वाला इन्हें वोट नहीं करेगा। ऐसे में स्थानीय प्रत्याशियों से विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री अपने लिए वोट मांगने में सफल रहे हैं।योगी फैक्टर :
एक वह भी दौर था जब मुजफ्फरनगर के खेतों में गन्ना कम और लाशें ज्यादा मिलती थीं…। यह बात बहुत ही कुख्यात हो चुकी थी, पर अब यह एक गुजरे हुए जमाने की बात हो चुकी है। योगी के दौर में अब किसी की हिम्मत नहीं पड़ती है कि आंख उठाकर देख भी ले। इस इलाके के लिए मतदान की बड़ी वजह है।राशन और राम :
2022 में इसी तरह का माहौल विपक्ष ने बनाया था। माहौल इस तरह से था कि बस अब सरकार बदल रही है लेकिन राशन और राम ने गणित गड़बड़ा दिया। पूरी तरह से यह चुनाव केमिस्ट्री पर हुआ और परिणाम सबके सामने है।सपा, कांग्रेस और ‘इंडिया’
जातीय समीकरण :
सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने पूरी तरह से जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया है। यही वजह है कि इस क्षेत्र में अति पिछड़े वर्ग को ज्यादा महत्व दिया है। इसके कारण यह कई सीटों पर बढ़त बनाते दिख रहे हैं।मुस्लिम ध्रुवीकरण :
मुस्लिम वोट जो सपा और कांग्रेस के अलग-अलग लडऩे पर बिखर जाता था। वह इस बार बहुत कम बिखरता दिख रहा है। इसके कारण ही रामपुर, कैराना और अलीगढ़ में प्रभाव बढ़ता हुआ दिखाई दिया है। हालांकि इसका नुकसान भी अन्य सीटों पर ‘हिंदू बनाम मुस्लिम’ से हो रहा है।बसपा का मजबूती से न लडऩा :
2014 के चुनाव में शून्य सीटें पाने वाली बसपा ने 2019 में इस तरह से समीकरण बदला कि 10 सीटों पर विजय हासिल की। इस बार पहले और दूसरे चरण में बहुत मजबूती के साथ नहीं लड़ी है। इसका लाभ कई इलाकों में लेने की कोशिश। यह भी पढ़ें
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