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JK Diary: मैं कश्मीर हूं… धड़क रहा कश्मीर का दिल, शांति-बहाली के साथ मतदान प्रतिशत बढ़ाना चुनौती

Lok Sabha Elections 2024 : धारा 370 हटने के बाद से घाटी में शांति बहाली का दावा किया जा रहा है और कई मायनों में शांति नजर भी आ रही है। इसलिए इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। पढ़िए श्रीनगर से अनिल कैले की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीMay 16, 2024 / 12:07 pm

Shaitan Prajapat

Lok Sabha Elections 2024 : मैं कश्मीर हूं। श्रीनगर मेरा दिल है। श्रीनगर के बाशिंदे मेरे दिल की धड़कन। लोकसभा चुनाव के मतदान की घड़ी आ गई हैं। एक दिन बाद मतदान होना है, इसलिए मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही है। साथ ही धड़कन बढ़ रही है मेरे हुक्मरानों के दिलों की। मेरी सुरक्षा में लगे सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों के दिलों की। उन सरकारी कर्मचारियों के दिलों की भी जिनकी ड्यूटी मतदान कराने के लिए लगाई गई है। इसकी खास वजह भी है। धारा 370 हटने के बाद से घाटी में शांति बहाली का दावा किया जा रहा है और कई मायनों में शांति नजर भी आ रही है। इसलिए इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। साथ ही मतदान को शांति बहाली पर मोहर के रूप में देखा जाएगा।

क्या बदल पाएगी सियासी दिशा-

श्रीनगर, गांदरबल, बडग़ाम, पुलवामा और शोपियां जिले की 18 विधानसभा क्षेत्रों को जोडकऱ बनाया गया श्रीनगर का लोकसभा क्षेत्र घाटी का मध्यवर्ती इलाका है। यहां एक ओर सोनमर्ग के बर्फ से ढके पहाड़ और गलेशियर हैं तो दूसरी ओर पाम्पोर में हजारों एकड़ में फैली केसर की क्यारियां। चरारे शरीफ और हजरत बल की दरगाह मेरे आवाम के लिए अल्लाह की बारगाह में इबादत करने का मुकद्दस स्थान है तो खीर भवानी और शंकराचार्य हिन्दुओं का प्रमुख मंदिर। गंगा जमुनी तहजीब की सांस्कृतिक विरासत में सियासत पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा रहा है। पन्द्रह आम चुनावों में से बारह बार नेशनल कांफ्रेंस जीती है। चार बार फारूक अब्दुल्ला और तीन बार उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला सांसद चुने गए। एक-एक बार निर्दलीय, कांग्रेस और पीडीपी के प्रत्याशी ने विजय प्राप्त की है। श्रीनगर से पिछली बार के सांसद फारूक अब्दुल्ला चुनाव नहीं लड़ रहे। मैं हैरान हूं कि उमर अपनी पार्टी के गढ़ को छोड़कर बारामुला सीट से राजनीतिक भाग्य आजमा रहे हैं। इसलिए इस बार का चुनाव कश्मीर की राजनीतिक दिशा बदलने वाला चुनाव हो सकता है।

प्रचार में स्थानीय मुद्दे नजरअंदाज

झेलम नदी के दोनों ओर बसे श्रीनगर में गुलाबी सर्दी का दौर है। दिन में चटक धूप निकल रही है। जबरवन पर्वत शृंखला की तलहटी में बनाए गए निशात गार्डन, शालिमार गार्डन, बोटेनिकल गार्डन में पर्यटकों का हुजूम उमड़ रहा है। पर्वत शृंखला की सबसे ऊंची चोटी पर शंकराचार्य का मंदिर है। लाल चौक में शांति है। डल झील के शिकारे सैलानियों से आबाद हैं। शिकारे वालों के चेहरों पर इस बात का तो सुकून है कि पर्यटक आने से रोजी रोटी मिल रही है, लेकिन इस बात का गुस्सा भी है कि वे अपने हक की बात किसके सामने रखें। राज्यपाल तक आम आदमी की पहुंच नहीं है। शहर की आबादी बढ़ रही है। वाहन बढ़ रहे हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत शहर का रूप निखारा जा रहा है। जरूरत सकड़ों को चौड़ा करने की है जबकि सकड़ों को सिकोड़ा जा रहा है। इससे जाम की समस्या आम हो गई है। इस आम समस्या से किसी का सरोकार नजर नहीं आ रहा। यही वजह है कि चुनाव प्रचार भी स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज कर धारा 370 के मसले पर केन्द्रित हो गया है। नेशनल कांफ्रेंस धारा 370 की बहाली के लिए अपने प्रत्याशी को संसद में भेजने की अपील कर रही है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी पीडीपी धारा 370 हटाने के खिलाफ वोट करने की गुहार लगा रही है। पहली बार चुनाव लड़ रही अपनी पार्टी भी नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी की नाकामियों के भरोसे नई राजनीतिक सुबह लाने के प्रयास में जुटी है।

पहली बार विशेष समुदाय पर भरोसा-

मैंने सियासत के कई दौर देखे हैं। शेख अब्दुल्ला से लेकर उमर अब्दुल्ला और मुफ्ती सईद से लेकर महबूबा मुफ्ती तक। पहली बार देख रहा हूं कि नेशनल कांफ्रेंस ने शिया समुदाय के आगा सैयद रूहुल्ला मेहदी पर दाव खेला है। मेहदी बडग़ाम से तीन बार विधायक रह चुके हैं। केबिनेट मंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता भी रहे। मीठा बोलते हैं। बडगाम और चरारे-शरीफ विधानसभा क्षेत्र में इनका काफी दबदबा है। श्रीनगर से 25 किलोमीटर दूर बडगाम जिले में प्रवेश करते ही इस समुदाय का प्रभाव दिखाई देने लगता है। चाडूरा होते हुए चरारे शरीफ तक बसे गांवों में ईरान के शिया नेता अयातुल्ला खोमैनी ने पोस्टर देखे जा सकते हैं। यहां के आवाम की आय का मुख्य जरिया सेब की खेतीबाड़ी है। विदेशों से सेब आयात होने से वे निराश हैं। उनका मानना है कि सूबे में सेब प्रसंस्करण इकाइयां लगाई जानी चाहिए।
मेहदी का मुकाबला पीडीपी की युवा इकाई के अध्यक्ष वाहिद रहमान पर्रा से हो रहा है। पर्रा जम्मू कश्मीर क्रीड़ा परिषद के सचिव भी रह चुके हैं। वे आतंककारी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से सम्पर्क के आरोप में वर्ष 2020 में गिरफ्तार हो चुके हैं। पीडीपी के लिए यहां पासा पलटना आसान नहीं है। पार्टी के वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में जीते पांच विधायकों में से चार विधायकों सहित कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। भाजपा और कांग्रेस का प्रभाव कम है। कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस के साथ है। भाजपा के अपनी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद अशरफ मीर को समर्थन देने की चर्चा है। गुलाम नबी आजाद की पार्टी डीपीएपी ने आमिर भट्ट को चुनावी मैदान में उतारा है। चुनावी रण में कुल 24 प्रत्याशी हैं। कागजों में मुकाबला नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और अपनी पार्टी के बीच जरूर नजर आ रहा है, लेकिन असली टक्कर एनसी के अनुभवी और पीडीपी के युवा नेता में होता दिख रहा है।

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