कितने सदस्य होते हैं इसमें
इसमें अलग-अलग दलों के 15 सदस्य होते हैं। अभी कौशांबी से भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर इसके अध्यक्ष हैं। अभी इसमें 7 भाजपा, चार कांग्रेस के, जबकि शिवसेना, जदयू, सीपीआइएम व बसपा का एक-एक सांसद है।
कौन करता है नियुक्ति
लोकसभा अध्यक्ष आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं, जिनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए होता है।
कौन कर सकता है शिकायत?
कोई भी व्यक्ति किसी सांसद के खिलाफ शिकायत कर सकता है, लेकिन अनैतिक आचरण के सबूत होने चाहिए। एफिडेविट भी जमा करना होता है। लोकसभा या राज्यसभा सदस्य खुद शिकायत करता है तो एफिडेविट की जरूरत नहीं। शिकायत लोकसभा सांसद के जरिए जाएगी।
क्या करती है एथिक्स कमेटी?
समिति सबसे पहले प्रारंभिक जांच करती है। समिति की राय में यदि प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं है, तो वह मामले को हटाने की सिफारिश कर सकती है। इसके लिए समिति अध्यक्ष स्पीकर को सूचना देते हैं। यदि प्रारंभिक जांच के बाद समिति की राय में मामला बनता है, तो समिति जांच करती है। इसके बाद समिति लोकसभा अध्यक्ष को सिफारिश भेजती है।
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दोषी पाए जाने पर क्या कार्रवाई?
अगर आचार समिति की जांच में किसी सदस्य को नैतिक दुव्र्यवहार या आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया जाता है तो नियम 297 के तहत दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान है। जिसके तहत निंदा, भत्र्सना और तय समय के लिए सदन से निलंबन और निष्कासनशामिल है।
18 साल पहले गई थी 11 सांसदों की सदस्यता
2005 में पैसे लेकर प्रश्न पूछने के एक मामले में 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद की सदस्यता गई थी। लोकसभा में आरोपों की जांच कांग्रेस सांसद पीके बंसल की अगुवाई वाली विशेष समिति ने की थी, जबकि राज्यसभा में आचार समिति ने शिकायत की जांच की।
11 सांसदों में छह भाजपा के
निष्कासित सांसद में छत्रपाल सिंह लोढ़ा (ओडिशा), अन्ना साहेब एमके पाटिल (एरंडोल, महाराष्ट्र), चंद्र प्रताप सिंह (सीधी, मध्य प्रदेश), प्रदीप गांधी (राजनांदगांव, छत्तीसगढ़), सुरेश चंदेल (हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) और जी महाजन (जलगांव, महाराष्ट्र) भाजपा के थे। इसके अलावा, तीन सांसद नरेंद्र कुमार कुशवाहा (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश), लाल चंद्र कोल (रॉबस्र्टगंज, उत्तर प्रदेश) और राजा राम पाल (बिल्हौर, उत्तर प्रदेश) बसपा के और एक-एक राजद (मनोज कुमार) से थे और कांग्रेस (राम सेवक सिंह)। इनमें से छत्रपाल सिंह लोढ़ा राज्यसभा सांसद थे।
स्टिंग ऑपरेशन ‘दुर्योधन’ में फंसे
2005 में यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में कोबरापोस्ट ने स्टिंग ऑपरेशन ‘दुर्योधन’ किया था। इसमें इन्होंने कथित तौर पर पैसे के बदले सदन में सवाल पूछने की इच्छा बताई थी और सदन में सवाल भी पूछे थे।
आडवाणी ने बताया था, मृत्युदंड के समान
18 साल पहले लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ चटर्जी के फैसले की तुलना मृत्युदंड से की थी। अब टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने इसे प्रतिशोधात्मक कार्रवाई कहा है।