होइहि सोइ जो राम रचि राखा…
राम मंदिर के मुद्दे पर राजनीति खूब हुई। अब भी हो रही है, लेकिन केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति ने उस पुनीत कार्य को संभव कर दिखाया, जिसे कभी असंभव मानकर लगातार टाला जाता रहा। यह मुद्दा करोड़ों भारतीयों की आस्था से जुड़ा था, जिनके लिए भगवान राम आराध्य भी हैं, आलंबन और पथ-प्रदर्शक भी। रामचरित मानस की इस चौपाई की जड़ें भारतीय जन-मानस में गहराई तक हैं, ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा’ (संसार में वही होगा, जो राम ने रच रखा है। इस विषय में तर्क से कोई लाभ नहीं है)। राम मंदिर के निर्माण में भी तर्क-वितर्क से परहेज किया जा सकता था, क्योंकि मंदिर बनकर रहेगा, यह शायद नियति ने पहले से रच रखा था। उद्देश्य पुनीत-पावन था, इसलिए अयोध्या को लेकर नकारात्मक ऊर्जा भी सकारात्मक ऊर्जा में बदल गई। राम मंदिर इस स्वस्थ परंपरा का भी प्रतीक है कि व्यवस्था सुविचारित प्रक्रिया से उद्देश्य को कैसे निष्कर्ष तक पहुंचा सकती है।
अब धार्मिक पर्यटन नई उड़ान भरने वाला
अब भगवान राम की नगरी अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक धाम बन चुकी है। यहां से धार्मिक पर्यटन नई उड़ान भरने वाला है। देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह शुभ संकेत है। संपूर्ण राम मंदिर तैयार होने में दो साल और लगेंगे। मंदिर परिसर में चारों कोनों पर भगवान सूर्य, मां भगवती, भगवान गणेश और भगवान शंकर के मंदिर बनाए जाएंगे। उत्तर दिशा में मां अन्नपूर्णा तो दक्षिण की ओर बजरंगबली का मंदिर होगा। इन सभी का निर्माण पूर्ण होने पर दुनिया में राम मंदिर की दिव्यता, भव्यता और निखर कर सामने आएगी।
राम राज बैठें त्रैलोका, हरषित भए… गए सब सोका
(भगवान राम के राजगद्दी पर बैठते ही तीनों लोक हर्षित हुए और उनके सब दुख दूर हो गए)
-रामचरित मानस के लंका कांड से
500 साल के सफर की प्रमख घटनाएं
1528 : मुगल बादशाह बाबर ने विवादित स्थल पर मस्जिद का निर्माण कराया।
1853 : विवादित स्थल को लेकर पहली बार दंगे हुए।
1859 : अंग्रेजी हुकूमत ने विवादित स्थल के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।
1949 : मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात को मूर्तियां वहां रख दीं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया। जिला मजिस्ट्रेट के.के. नायर ने हिंदुओं की भावनाएं भडक़ने के डर से आदेश पूरा करने में असमर्थता जताई। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया।
1950 : फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गईं। एक में रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरी में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखने की इजाजत मांगी गई। निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में तीसरी अर्जी दाखिल की।
1961 : यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पजेशन और मूर्तियां हटाने की मांग की।
1984 : विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने कमेटी बनाई।
1986 : फैजाबाद के जिला जज ने हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया।
1989 : विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत की।
6 दिसंबर, 1992 : हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिराया।
2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़े के बीच बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
2017 : सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया, लेकिन मध्यस्थता पैनल हल खोजने में नाकाम रहा।
6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू।
16 अक्टूबर, 2019 : सुनवाई पूरी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवंबर, 2019 : सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। हिंदू पक्ष को 2.77 एकड़ विवादित जमीन मिली। मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश।
25 मार्च, 2020 : करीब 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट हुए।
5 अगस्त, 2020 : राम मंदिर का भूमि पूजन।
19 जनवरी, 2022 : रामलला की नवनिर्मित मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में पहुंची।