क्या होता है विशेष राज्य का दर्जा
वे राज्य जो पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण इलाके, रणनीतिक सीमा स्थान, कम प्रति व्यक्ति आय, कम जनसंख्या घनत्व, बड़ी जनजातीय आबादी की उपस्थिति, आर्थिक और बुनियादी ढांचे के पिछड़ेपन और राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति सहित कुछ आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, उन्हें विशेष श्रेणी का दर्जा दिया जाता है।
विशेष श्रेणी का दर्जा पाने के लिए मानदंड
पूर्ववर्ती योजना आयोग निकाय, राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) ने कई विशेषताओं के आधार पर राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया, जिनमें शामिल हैं:
-पहाड़ी एवं कठिन भूभाग
-कम जनसंख्या घनत्व
-एक बड़ी जनजातीय आबादी की उपस्थिति
-अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर रणनीतिक स्थान
-आर्थिक एवं अवसंरचनात्मक पिछड़ापन
-राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
-जम्मू और कश्मीर विशेष श्रेणी का दर्जा पाने वाला पहला राज्य था और बाद के वर्षों में 10 अन्य राज्य इसमें शामिल किये गये, जिनमें से उत्तराखंड 2010 में अंतिम राज्य था।
विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त होने से मिलने वाले लाभ:
-विशेष राज्य के दर्जा का फायदा यह होता है कि राज्य में चलने वाली केंद्र की योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी अधिक हो जाती है। केंद्र से वित्तीय मदद मिलती है। उद्योगों को कर में रियायत भी मिलती है। इनमें उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क व कारपोरेट टैक्स आदि शामिल हैं।
-विशेष श्रेणी का दर्जा निजी निवेश के प्रवाह को उत्प्रेरित करता है और राज्य के लिए रोजगार और अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करता है। इसके अलावा, राज्य नई बचत से अधिक कल्याण-आधारित योजनाएँ बना सकता है क्योंकि केंद्र सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर व्यय का 90% वहन करता है। इसके अलावा, केंद्र से अधिक अनुदान राज्य के बुनियादी ढांचे और सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं के निर्माण में मदद करता है।
-भारत के संविधान में किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है।
हालाँकि, अतीत में, केन्द्रीय योजनाबद्ध सहायता कुछ राज्यों को इस आधार पर दी गई थी कि वे अन्य राज्यों की तुलना में ऐतिहासिक रूप से वंचित हैं।