एयरलाइंस कंपनियों और ऑनलाइन ट्रैवल एग्रीगेटर्स को केंद्र सरकार ने फ्लाइट से सफर करने के दौरान वेब चेक-इन में हर सीट को पेड नहीं दिखाने की चेतावनी दी है। ऑनलाइन ट्रैवल एग्रीगेटर्स और विमानन कंपनियां अनिवार्य मुफ्त वेब चेक-इन के ‘मिसलिडिंग क्लेम’ के बावजूद प्रत्येक सीट को पेड दिखाती हैं और इसके लिए 150 से 250 रुपए तक चार्ज करती हैं। कई मामलों में कंफर्म टिकट होने के बावजूद यात्रियों की बोर्डिंग नहीं हो पाती और इसके बाद रिफंड में भी देरी की जाती है। इसे देखते हुए सरकार अब एयरलाइंस के डार्क पैटर्न पर शिकंजा करने की तैयारी कर रही है।
एयरलाइंस कंपनियों को 8 नवंबर को किया तलब
उपभोक्ता मंत्रालय ने एयरलाइंसों को 8 नवंबर को जवाब देने के लिए तलब किया है। सरकार जल्द ही इस संबंध में नई गाइडलाइंस नोटिफाई करेगी। आमतौर पर वेब चेकइन फ्री होता है। अतिरिक्त शुल्क केवल तभी लगाया जाता है जब यात्री अधिक लेग रूम वाली सीट, एयरलाइंस की अतिरिक्त सेवाएं जैसे विंडो सीट जैसी सुविधाओं का विकल्प चुनते हैं लेकिन अभी वेब चेकइन करते हैं तो लगभग सभी सीटें पेड ही दिखती हैं।
ग्राहको से ज्यादा वसूली के लिए डार्क पैटर्न का इस्तेमाल
एयरलाइंस कंपनियां ग्राहकों से ज्यादा वसूली करने के लिए डार्क पैटर्न का इस्तेमाल करती हैं। उदाहरण के जरिए समझें तो कंपनी फ्री अनिवार्य वेब चेक-इन की सर्विस देती है लेकिन आप जैसे ही अपनी सीट बुक करने जाएंगे तो आमतौर पर ट्रिकी पैटर्न के जरिए बीच वाली या फिर फ्लाइट में सबसे लास्ट वाली सीट कन्फर्म हो जाएगी। वहीं वेब चेकइन करते वक्त दिखता है कि कई और सीट्स खाली हैं। ऐसे में आप फेवरेट विंडो सीट लेना चाहते हैं तो इसके लिए एक्ट्रा चार्ज चुकाना होगा।
एक साल में मिलीं 10,000 शिकायतें
उपभोक्ता मंत्रालय को पिछले 1 साल में ऐसी 10 हजार के करीब शिकायतें मिली है। इनमें 41 शिकायतें टिकट रद्द करने के बाद भी एयरलाइंस की ओर से रिफंड में देरी या इनकार करने से संबंधित है। वहीं, 15 शिकायतेें सेवाओं में कमी और 5 शिकायतें वैध टिकट के बावजूद बोर्डिंग से इनकार करने से संबंधित है।