अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया
राजद का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि बिहार की आबादी में पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है और जनहित अभियान बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार 50 प्रतिशत की सीमा वैध नहीं है, जहां प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक माना गया था। शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को बिहार में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में लागू कोटा बढ़ोतरी की बहाली की मांग करने वाली राज्य सरकार की याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। इसने याचिकाओं के समूह को सितंबर 2024 में अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए पटना उच्च न्यायालय ने 20 जून के अपने फैसले में बिहार विधानसभा द्वारा 2023 में पारित संशोधनों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के प्रावधान का उल्लंघन करते हैं।
याचिका में क्या कहा गया
बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत सर्वेक्षण कराने के बाद कोटा बढ़ा दिया था। नवंबर 2023 में जारी एक अधिसूचना में मौजूदा आरक्षण कानूनों में संशोधन करने की मांग की गई। कानून से राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाता, इसमें अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए 2 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्गों के लिए 25 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 18 प्रतिशत तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10 प्रतिशत शामिल होता। नीतीश कुमार सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं। याचिकाओं में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।