सूत्र बताते हैं कि सेना मेडल से सम्मानित मेजर नवीन जाजुंदा और कमल जांगिड़ नहरी जमीन मिलने की करीब चार साल से प्रतीक्षा कर रहे थे। इनका प्रस्ताव भी सरकारी दराज में पड़ा रहा। बार-बार चि_ी-पत्री के बाद भी फिलहाल कुछ मिलने की उम्मीद नहीं दिखी। बताया जाता है कि कभी कागज की कमी या कोई अन्य कारण बताकर इन्हें भी टरकाया जाता रहा। इसके बाद राजस्थान पत्रिका ने ‘सरकारी आक्रमण से वीरता पदक वाले सेना के जवानों का समर्पण’ शीर्षक समेत दो-तीन समाचार नहीं मिली जमीन बहादुरों को प्रकाशित किया तो प्रशासन में खलबली मच गई। कलक्टर ने पत्र लिखे तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक ने आगे आकर इन लम्बित मामलों को तुरंत सुलझाने को कहा। जिला सैनिक कल्याण अधिकारी रहे मुकेश कुमार शर्मा और राजेंद्र सिंह जोधा ने आगे बढ़कर इन प्रस्तावों को फिर से भिजवाना शुरू किया। इसी का असर रहा कि पिछले महीने मेजर नवीन जाजुंदा व कमल जांगिड़ को जमीन के कागज मिले। नवीन जाजुंदा के पिता रामनिवास जाजुंदा ने यह दस्तावेज उपनिवेशन विभाग से लिए।
खुशी की बात… मेजर नवीन के पिता रामनिवास ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि करीब चार-साढ़े चार साल से इंतजार कर रहे थे। पत्रिका ने इसका अभियान चलाया, प्रशासन के बाद मुख्यमंत्री की पहल पर बहादुरी का इनाम मिला।
कतार में कई और सूत्रों के अनुसार जमीन के इंतजार में अभी भी आठ-दस सेना के जवान/परिवार हैं। लाडनूं के गांव बिठूड़ा के मघराज जांगिड़ का मामला तो 11 साल से भी अधिक समय से अटका है। पैराट्रूपर जांगिड़ सेना मेडल से सम्मानित हैं। इनके प्रस्ताव को वर्ष 2011 में ही तत्कालीन जिला कलक्टर ने उपनिवेशन विभाग, बीकानेर को भेज दिया था। सरकारी काम की रफ्तार तो देखिए कि अभी तक इनके हिस्से नहरी जमीन का एक इंच तक नहीं पहुंचा है। परिजन बार-बार उपनिवेशन विभाग के कारिंदों तक अपनी गुहार लगाते हैं। जल्द होने की आस में फिर घर आकर बैठ जाते हैं। यह ही नहीं नावां के गांव कांसेड़ा निवासी डीआईजी करण सिंह राठौड़ का भी यही हाल है। उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक मिल चुका है पर नहीं मिली तो इसके सम्मान में मिलने वाली जमीन। करीब नौ साल से इनका प्रस्ताव भी उपनिवेशन विभाग बीकानेर में रद्दी बनकर पड़ा है। सहायक कमाण्डेंट भवानी सिंह का मामला भी करीब सात साल से लंबित है। मकराना के राणी गांव निवासी भवानी सिंह भी राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित हैं। तत्कालीन नागौर कलक्टर ने जुलाई 2016 में यह प्रस्ताव उपनिवेशन को भेजा था, तब से इस प्रस्ताव का कुछ नहीं हुआ। शौर्य चक्र प्राप्त करने वाले आशुसिंह अब दुनिया में नहीं रहे। नावां उपखण्ड के चितावा निवासी आशु सिंह का परिवार करीब चार साल से अपना हक मिलने के इंतजार में बैठा है। इसी पद से सम्मानित जवान किशोरलाल का मामला भी चार साल से उपनिवेशन विभाग के पास पड़ा है। इसी तरह लाडनूं के पूर्व सैनिक हरिराम और स्वर्गीय नानूराम युद्ध विकलांग सैनिक सम्मान से सम्मानित तो हुए पर उन्हें जमीन अब तक नहीं मिल पाई।
शहीद परिवार तक खाली हाथ सूत्र बताते हैं कि डीडवाना के कणवाई गांव के शहीद भागीरथ सिंह के परिजनों का भी इंतजार भी लंबा हो चला है। अप्रेल 2009 में भागीरथ उड़ीसा के नक्सली भुठभेड़ में शहीद हुए थे। तब से इनका परिवारजमीन मिलने का इंतजार है। इस बाबत कई बार प्रशासन से गुहार की जा चुकी है। इसके अलावा पीह गांव के शहीद पांचूराम तो फिरड़ोद के शहीद बजरंग लाल का परिवार भी इसी कतार में है।
नहरी जमीन नहीं मिली तो किया इनकार, अब इंतजार कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें जमीन देने का कागज तो थमा दिया गया पर वो जमीन नहरी थी ही नहीं। ऐसे में इन्होंने अस्वीकार कर जिला सैनिक कल्याण अधिकारी से लेकर उपनिवेशन विभाग को लिख दिया। डीडवाना के कैप्टन महबूब, कठौती के सरवन राम, सेना में पदक लेने के बाद इनको भी जमीन मिलनी थी, पर जैसलमेर के टीलों में जो दी जानी थी, उसे खारिज कर दिया। अब दो-ढाई साल से इंतजार में हैं।
इनका कहना दो-तीन शहीद परिवार को लेकर प्रस्ताव अथवा जो खामियां थीं, उसे दूर कर भेज दिया गया है। कुछ सेना पदक वालों का मामला लम्बित है, इसके प्रयास चल रहे हैं, उपनिवेशन विभाग संभवतया जल्द ही इन सबको जमीन आवंटित कर देगा। दो मेजर को हाल ही में दस-दस बीघा जमीन मिली है।
-कर्नल राजेंद्र सिंह जोधा, सैनिक कल्याण अधिकारी, डीडवाना