टोल पर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि टोल नाकों पर ज्यादातर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग रहते हैं। पैसे खुल्ले नहीं होने या 10 रुपए का सिक्का देने पर भी बदतमीजी करने या लडऩे पर उतारू हो जाते हैं। स्थानीय लोगों से आधार कार्ड के साथ गाड़ी की आरसी भी मांगते हैं। आजकल कई लोग दिल्ली, यूपी, हरियाणा, बंगाल आदि राज्यों से कार व अन्य वाहन खरीदकर लाते हैं, जिनकी आरसी बनने में कम से कम एक महीना लगता है। इसके अलावा टोल पर सिर्फ सिंगल लेन चालू रखते हैं। इसके कारण शाम के समय लंबी लाइन लगती है और इमरजेंसी में वाहन लेट हो जाते हैं। रोल, थांवला, देवरी टोल पर कटाणी व कच्चे रास्ते है। इस पर पंचायत का क्षेत्राधिकार होता है उन पर भी अवैध वसूली के लिए नाके लगा दिए हैं। इनके पुलिस चरित्र प्रमाण पत्र बनाने और यूनिफॉर्म में रहने की पाबंदी लगाने के बाद ही कुछ लगाम लग सकती है।
सरकार को भी लगाते हैं चूना ऐसा भी जानकारी में आया है कि डीपीआर बनाते समय टोल की जगह फिक्स नहीं करते हैं, फिर बोलते हैं कि रेवेन्यू लोस होता है। सूत्रों के अनुसार धरातल पर हकीकत यह है कि सरकार को अंधेरे में रखने के लिए टोल वाले एक्सट्रा मशीन रखते हैं, जिससे रात को नकली पर्ची काटते हैं। ठेकेदार ठेका भी पिछले साल के डाटा के आधार पर लेते हैं, इसलिए कागजों में कम टोल वसूली बताकर अधिक वसूलते हैं। उदाहरण के लिए 24 घंटे में 2 लाख की टोल वसूली बताते हैं, जबकि वास्तव में वसूली 3 लाख तक होती है। इससे सरकार को भी नुकसान होता है।
न पूरा स्टाफ रखते, न अन्य सुविधाएं ज्यादातर टोल संचालकों को टोल पर आठ-आठ घंटे की शिफ्ट के हिसाब से पूरा स्टाफ और क्रेन, एम्बुलेंस, पेट्रोलिंग वाहन आदि रखने होते हैं, लेकिन वे नियमानुसार पूरा स्टाफ नहीं रखते और न ही एमओयू की शर्तों के अनुसार क्रेन, एम्बुलेंस, पेट्रोलिंग वाहन भी नहीं रखते हैं। ठेकेदार कागजों में पूरा स्टाफ दिखाते हैं, जबकि मौके पर दो-चार जने ड्यूटी करते हैं। इसके साथ टोल पर नर्सिंग स्टाफ नहीं रहता, न ही इनकी डिग्री व बॉयोडाटा चेक होता है। कई जगह तो टोल कर्मी नशे में वाहन चालकों से दुव्र्यवहार तक करते हैं।
टॉयलेट पर रखते हैं ताला टोल पर टॉयलेट सुचारू नहीं रखते, न ही पीने का पानी, रिफ्लेक्टर लगाने की सुविधा भी नही रखते हैं। नियमानुसार सडक़ से पशुओं को हटाने की जिम्मेदारी भी टोल संचालक की होती है, लेकिन वे ऐसा नहीं करते। कंट्रोल रूम के 1033 नम्बर भी चालू नहीं रखते। न ही उसमें कोई नियमित बैठता है। नियमानुसार सातों दिन 24 घंटे कंट्रोल रूप में एक व्यक्ति की ड्यूटी लगनी चाहिए। कई जगह तो कंट्रोल रूप को अवैध रूप से मयखाना बनाकर रखते हैं।
कलक्टर के आदेशों की अवहेलना टोल से गुजरने वाले बिना हेलमेट, बस/पिकअप की छत पर बैठे लोगों का ई-चालान बनाने के लिए सीसीटीवी कैमरा से रोजाना शाम को पुलिस के अभय कमांड को 5 फोटो भेजने के लिए गत वर्ष कलक्टर ने आदेश दिए थे। लेकिन टोल संचालकों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
कमेटी गठित करेंगे टोल नाकों पर नियमानुसार सुविधाएं जुटाने व टोल कार्मिकों का पुलिस वेरिफिकेशन करवाने के लिए मैंने 4 सितम्बर को एनएच के एक्सईएन के साथ बैठक की है। जल्द ही एनएच एक्सईएन, पुलिस उपाधीक्षक, परिवहन विभाग के निरीक्षक आदि को शामिल करते हुए एक कमेटी बनाएंगे, जो महीने में एक या दो बार तीनों टोल मैनेजर के साथ बैठक करेंगे और यह जांच करेंगे कि टोल नाकों पर नियमानुसार सुविधाएं हैं या नहीं। साथ ही पुलिस वेरिफिकेशन के हिसाब से कार्मिक लगे हैं या कोई और।
– सुनील कुमार, उपखंड अधिकारी, नागौर।