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राजस्थान चुनाव: बदली राजनीति की वेशभूषा, धोती-कुर्ता छोड़ नेताओं ने पहनी जींस-पेंट

Rajasthan Assembly Election 2023 : नेताओं की पहचान पहले पहनावे से होती थी। धोती-कुर्ता या पाजामा- कुर्ता पहने नेता मंच से सभाओं को संबोधित करते थे।

नागौरNov 06, 2023 / 08:22 am

Nupur Sharma

Rajasthan Assembly Election 2023 : नेताओं की पहचान पहले पहनावे से होती थी। धोती-कुर्ता या पाजामा- कुर्ता पहने नेता मंच से सभाओं को संबोधित करते थे। बदलते दौर में चुनाव के समय नेताओं के पहनावे की पसंद भी बदल गई है। कभी नेताओं की शान माने-जाने वाले धोती-कुर्ता की जगह अब आधुनिक परिधान आ गए हैं। इनमें पुरुष वर्ग पेंट-शर्ट तो महिलाएं ज्यादातर साड़ी की अपेक्षा सलवार-शूट, जींस की पेंट व कुर्ता-पाजामा में नजर आने लगे हैं। स्थिति यह है कि नए दौर के अधिकांश नेता इस राजनीति के ड्रेस कोड धोती कुर्ता को छोड़ चुके हैं। अब राजनीतिक कार्यक्रमों में जींस की पेंट, शर्ट में नजर आते हैं। विशेष अवसरों को छोड़कर कुछ नेता कुर्ता-पाजामा में जरूर दिखाई देते हैं। नागौर जिले में विधायक मोहनराम चौधरी ही ऐसे नेता हैं जो आज भी धोती-कुर्ता पहनते हैं। चुनावी कार्यक्रमों में राजनीतिक दलों की समर्थक महिलाएं सलवार-शूट या जींस की पेंट और शर्ट में नारे लगाती नजर आती हैं। जबकि पहले महिलाएं सिर्फ साडि़यों में नजर आती थी।

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70-80 के दशक के बाद गायब हुआ धोती-कुर्ता: आजादी के बाद 1970 एवं 1980 के दशक में धोती-कुर्ता पूरी तरह भारतीय राजनीति के ड्रेस कोड ही पहचान बन गए थे। नेता इन्हें पहनने में गौरवान्वित महसूस करता था। धीरे-धीरे इसका चलन खत्म होने लगा। वर्ष 1990 तक कई नेता आधुनिक वेशभूषा में आ चुके थे। इसके बाद कुर्ता-पाजामा का चलन शुरू हुआ। इनका चलन आज भी है। कुर्ता-पाजामा बनाने वाले ज्यादातर टेलर चुनाव के दौरान व्यस्त रहते हैं। बुजुर्ग रामकुमार, दयालराम, रामसुमेर, कानाराम बताते हैं कि पहले चुनावी रैलियों एवं सभाओं में नेताओं का खादी का कुर्ता और सफेद झक धोती उनकी पहचान हुआ करती थी। नेता अपने पहनावे की वजह से सबसे अलग नजर आते थे, इनके समर्थक भी उनकी तरह की वेशभूषा में एक लाइन में बैठे रहते थे।


पाश्चात्य सभ्यता का चढ़ा रंग: विधायक मोहनराम चौधरी का कहना है कि धोती और कुर्ता भारतीय राजनीतिक का ड्रेस कोड ही नहीं, भारतीयता संस्कृति की परिचायक है। अब पाश्चात्य सभ्यता का रंग चढ़ चुका है। भारतीय विचारों के साथ पहनावा भी बदल गया है। पहले किसी की वेशभूषा से उसके क्षेत्र की पहचान होती थी। अब ऐसा नहीं है। सांस्कृतिक क्षरण होने से उनकी वेशभूषा भी बदल गई।

अब कमीज कोई नहीं बनवाता: दिल्ली दरवाजा में राजनीतिक दलों की पोशाक सिलने वाले टेलर अशोक टांक बताते हैं कि वर्ष 1964 में दुकान खोली थी। उस दौरान उनके पिता प्रेम टांक नेताओं के कमीज सिलते थे। धोती रेडीमेड मिल जाती थी। उस समय ज्यादातर नेता धोती-कुर्ता ही पहनते थे। कार्यकर्ताओं की पूरी फौज भी उनके रंग में नजर आती थी, अब ऐसा नहीं रहा। ज्यादातर नेता पेंट -शर्ट ही पहनते हैं। अब कमीज बनवाने कोई नहीं आता ।

अब तो कुर्ता-पाजामा ही बनता है: गांधी चौक में टेलर तबरेज खान बताते हैं कि उनके पास कुर्ता-पाजामा बनवाने के काफी आर्डर आते हैं, लेकिन धोती के ऊपर पहने जाने वाली कमीज अब कोई नहीं बनवाता है। उनके दादा व पिता जब काम करते थे उस समय यह चलन में था। अब धोती-कुर्ता का चलन से हट गया है।

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अब तो कई चीजें बदल चुकी है: भाजपा नेता जगबीर छाबा ने बताया जब वह छोटे थे उस दौरान सभाओं में नेता धोती-कुर्ता में नजर आते थे। अब तो नेता भी पाश्चात्य रंग में आ गए हैं। धोती- कुर्ता भारतीय राजनीतिक ड्रेस कोड के तौर पर विश्व पटल पर एक पहचान थी। नई पीढ़ी के नेताओं की जिम्मेदारी थी कि वह अपनी संस्कृति के साथ भारतीय ड्रेस कोड से भी जुड़े रहते।

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