सूत्र बताते हैं कि असल में किशनाराम ने जुलाई में इसे ठेके पर लिया। ट्रोले को मॉडिफाई किया गया था। ट्रोले के भीतर एक कंटेनरनुमा बॉक्स बना हुआ था। उसमें भारी मात्रा में शराब छिपाई जाती थी। इस बॉक्स के ऊपर पुलिस को चकमा देने के लिए ये शातिर कांच व शीशे रखकर तिरपाल से ढक देते थे, ताकि चेङ्क्षकग होने पर पहले पूरे ट्रेलर में कांच/शीशे होने का सोचकर छोड़ दिया जाए। ना जाने कितने ही बार वो इसी तरह झांसा देकर अवैध शराब गुजरात के राजकोट में सप्लाई करते रहे। पांच अक्टूबर को चुनाव के कारण चल रही सख्ती में पुलिस की सजगता से यह राज
खुल गया।
खुल गया।
सूत्रों का कहना है कि असल में गुजरात में शराब बंदी है। नरेश उर्फ हरखाराम और तेजाराम जाट यूं तो ट्रेलर को बतौर चालक ले जाते थे। इस ट्रेलर से शराब की तस्करी भी कम रोचक नहीं थी। पंजाब से गुजरात के राजकोट तक के इस तस्करी के सफर में बीच-बीच में ड्राइवर बदले जाते थे। किसी को एक-दूसरे की जानकारी नहीं देने की पाबंदी थी। साथ ही इन्हें इस काम के दौरान नई सिम दी जाती थी। जहां बदलना होता वहां तय कर ट्रेलर दूसरे के हवाले कर देते थे राजकोट में भी जिसे यह शराब पहुंचानी थी वो इन्हें रास्ते में ही मिल जाता। जो शराब राजस्थान से पांच सौ रुपए बोतल चलती थी वो वहां शराब के शौकीनों के पास तक पहुंचते-पहुंचते पंद्रह सौ की हो जाती थी।