कुछ ट्रेक्ट्रर ट्रॉलियों में धामण घास का बीज लेकर जानकार किसानों ने बीज की छंटाई की। कुछ ट्रेक्ट्रर पीछे हल लेकर भी जुताई करते रहे, ताकि बीज उड़े नहीं। पांच सौ बीघा जमीन पर नया चारागाह तैयार करने को लेकर यह बड़ी पहल की गई। डीजे पर बजते तेजा गायन के साथ कतारों में चलते ट्रेक्ट्ररों से आकर्षक नजारा बना हुआ था।
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मूण्डवा शहर, रावों की ढाणियों, बामुंडा की ढाणियों, कामुंडा की ढाणियों, क्यार की ढाणियों, प्रभुजी की ढाणियों, पाचुंडा की ढाणियों के अलावा मिर्जास व जनाणा से भी किसान गौ-सेवा के इस पुनीत कार्य में सहयोग करने के लिए ट्रेक्ट्रर लेकर पहुंचे। धामण घास के बीज की छंटाई की गई है। यह घास जड़ें नहीं छोड़ती है। बीज भी हवा के साथ-साथ उड़कर आसपास की जमीन में और फैल जाता है। गायों के लिए पौष्टिक चारे में इस घास की गिनती होती है। इस दौरान घनश्याम सदावत, मनोज मुण्डेल, मूण्डवा जाट समाज के अध्यक्ष जगदीश मुण्डेल, भंवरलाल मुण्डेल, श्रीनिवास ओझा, महेश बंग, शैतानराम, गणपतराम, सुखराम मुण्डेल, मुण्डेल, अजीत चौधरी, शिवराम मुण्डेल सहित व्यवस्थाओं में सहयोग करने वाले युवा व मौजीज लोग मौजूद रहे।
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खर्चा अपना-अपनाबीज की बुवाई से लेकर जलपान व भोजन व्यवस्था का भार गौशाला पर नहीं पड़े इसका ध्यान रखते हुए किसान अपने ट्रेक्ट्ररों में स्वयं के पैसों से डीजल भरवाकर पहुंचे। भोजन व जलपान की व्यवस्था का जिम्मा युवाओं ने उठाया। इससे गौशाला पर कोई अतिरिक्त आर्थिक भार नहीं पड़ा। यदि तैंया भी निकालते तो करीब तीन लाख रुपए का खर्चा आता।
भावनात्मक रूप से जुड़े हैं लोग
वर्ष 1996 में पहली बार तीन साल से छोटे बछड़ों के राज्य से बाहर ले जाने पर रोक लगी थी । संयोग से उस समय नागौर का बाबा रामदेव पशु मेला सम्पन्न हुआ था। व्यापारियों के खरीदे हुए बछड़े यहीं छुड़वा दिए गए। पहली बार गोवंश की ऐसी दुर्दशा हुई तो कुछ जागरूक किसानों ने बीड़ा उठाकर यह गौशाला शुरू की। तब से लोगों का भावनात्मक रूप से जुड़ाव है।
वर्ष 1996 में पहली बार तीन साल से छोटे बछड़ों के राज्य से बाहर ले जाने पर रोक लगी थी । संयोग से उस समय नागौर का बाबा रामदेव पशु मेला सम्पन्न हुआ था। व्यापारियों के खरीदे हुए बछड़े यहीं छुड़वा दिए गए। पहली बार गोवंश की ऐसी दुर्दशा हुई तो कुछ जागरूक किसानों ने बीड़ा उठाकर यह गौशाला शुरू की। तब से लोगों का भावनात्मक रूप से जुड़ाव है।