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Sawan 2022: महाराष्ट्र के इस मंदिर में है देश का सबसे बड़ा शिवलिंग, यहां पूरी होती है संतानप्राप्ति की मनोकामना

सावन महीना भगवान शिव को समर्पित है। शिव की पूजा में ज्योतिर्लिंग की पूजा श्रेष्ट फलदायी मानी गई है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह आखिरी ज्योतिर्लिंग है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से 12 मील दूर वेरुळ गांव के पास स्थित है। पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग के लिए यह कथा वर्णित है।

मुंबईAug 08, 2022 / 03:54 pm

Siddharth

Grishneshwar Jyotirlinga

सावन महीना भगवान शिव को समर्पित है। शिव की पूजा में ज्योतिर्लिंग की पूजा श्रेष्ट फलदायी मानी गई है। घृष्णेश्वर मंदिर भगवान शिव का सिद्ध स्थान माना जाता है। भगवान शिव का 12 वां और आखिरी ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में औरंगाबाद में स्थित है। इस स्थान को घुश्मेश्वर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। सावन के महीने में यहा पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवमहापुराण में भी आता है।
औरंगाबाद के पास ऐतिहासिक एलोरा की गुफाओं और बारहवें ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव मंदिर से करीब एक किलो मीटर की दूरी पर देश का सबसे बड़ा शिवलिंग आकार का मंदिर बनाया गया है। विश्वकर्मा मंदिर परिसर में यह भव्य मंदिर बनाया गया है। करीब 23 सालों में इस भव्य मंदिर के निर्माण का काम पूरा हुआ है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब 60 फुट है। इसका पिंड 40 फुट और शलाका का आकार 38 फुट तक है। मंदिर का आकार 108 फुट बाई 108 फुट है।
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शिव की भक्त घुष्मा की है कहानी: शहर के शोर-शराबे से दूर स्थित यह मंदिर शांति एवं सादगी से परिपूर्ण माना जाता है। हर साल यहां देश-विदेशों से लोग दर्शन के लिए आते हैं तथा आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उनके जीवन में एक ही बात का दुख था कि उन्हें कोई संतान नहीं थी। कई प्रयास के बाद भी उन्हें संतान की प्राप्ती नहीं हुई। तब ब्राह्मण की पत्नी सुदेहा ने छोटी बहन घुष्मा से अपने पति का विवाह करावा दिया। घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। वह रोजाना 100 पार्थिव शिव बनाकर पूरी भक्ति और निष्ठा से पूजा करती थी और फिर एक तालाब में उन्हें विसर्जित कर देती थी।
घुष्मा पर शिव की महान कृपा थी। कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बच्चे के आने से घर में खुशी और उल्लास का माहौल छा गया। इस दौरान घुष्मा से मिली खुशी उसकी बड़ी बहन सुदेहा को अच्छी नहीं लगी और वह उससे जलने लगी। घुष्मा का पुत्र सुदेहा को खटकने लगा और एक रात मौका पाकर सुदेहा ने घुष्मा के पुत्र की हत्या करके उसी तालाब में फेंक दिया।
इस घटना से पूरा परिवार दुखी हो गया। लेकिन शिवभक्त घुष्मा को अपनी भक्ति पर पूरा भरोसा था वह बिना किसी दुख विलाप के रोज की तरह उसी तालाब में सौ शिवलिंगों की पूजा कर रही थी। इतने में घुष्मा को तालाब से ही अपने पुत्र को वापस आता देखा। यह सब भगवान शिव की ही कृपा थी कि घुष्मा ने अपने मृत पुत्र को फिर से जीवित पाया। उसी वक्त स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए और घुष्मा को दर्शन दिए। भगवान उसकी बहन को दंड देना चाहते थे लेकिन घुष्मा अपने अच्छे आचरण की वजह से भगवान शिव से अपने बहन को माफ करने के लिए है। इसके बाद भगवान शिव ने घुष्मा से वरदान मांगने को कहा, तब घुष्मा कहती है कि मैं चाहती हूं कि आप लोक कल्याण के लिए हमेशा के लिए यहां पर बस जाएं। इसपर भगवान शिव ने कहा कि मैं अपनी भक्त के नाम से यहां घुष्मेश्वर के नाम से जाना जाऊंगा। तब से यह जगत में शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग के तौर पर पूजा जाता है।
इस मंदिर में पूरी होती है यह मनोकामना: ज्योतिर्लिंग ‘घुष्मेश्वर’ के पास ही एक सरोवर भी है जो शिवालय के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों का मानना है कि ज्योतिर्लिंग के साथ जो भक्त इस सरोवर के भी दर्शन करते हैं। भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं। शास्त्रों के मुताबिक, जिस दंपत्ती को संतान सुख नहीं मिल पाता है उन्हें यहां आकर दर्शन करने से संतान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह वही तालाब है जहां पर घुष्मा बनाए गए शिवलिंगों का विसर्जन करती थी और इसी तालाब के किनारे उसने अपने पुत्र जीवित पाया था।

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