पंकजा मुंडे ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज को भी संघर्ष करना पड़ा था। स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे को अपने पूरे राजनीतिक जीवन में संघर्ष करना पड़ा। वह महज साढ़े चार साल के लिए सरकार में आए। वह जनसंघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय की विरासत को आगे लेकर चल रही हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनकी पिछली दशहरा रैलियों में भीड़ देखी थी और उनसे इन लोगों के लिए काम करने को कहा था।
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रैली को संबोधित करते हुए पंकजा मुंडे ने आगे कहा कि लोगों का मानना हैं कि उनके नेता को कुछ मिलना चाहिए और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मुझे 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद से कोई पद नहीं दिया गया है, लेकिन मैं संतुष्ट हूं। हालांकि, उन्होंने कहा कि वह परली से दोबारा चुनाव लड़ना चाहती हैं, यहां उनके चचेरे भाई और एनसीपी नेता धनंजय मुंडे ने उन्हें पिछली बार हराया था। लेकिन पार्टी संगठन किसी भी शख्स से ऊपर है।अगर आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मुझे टिकट दिया तो मैं चुनाव की तैयारी शुरू कर दूंगी। बता दें कि पंकजा मुंडे 2014 और 2019 के बीच महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं, लेकिन जब बीजेपी इस जून में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के साथ गठबंधन में फिर से सत्ता में आई तो वह कैबिनेट में शामिल नहीं हुईं। वहीं, दूसरी तरफ पंकजा मुंडे की बीड में आयोजित दशहरा रैली में भगदड़ जैसे हालात बनने की खबर है। बताया जा रहा है कि पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे के भाषण के बाद हालात कुछ देर के लिए बेकाबू हो गए। बीड जिले के सावरगांव में मुंडे ने जैसे ही दशहरा रैली का भाषण खत्म किया, तभी कुछ कार्यकर्ता अचानक मंच के करीब पहुंच गए और हंगामा शुरू हो गया। स्थिति को देखते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज किया।