जॉनसन बेबी पाउडर की नई टेस्ट रिपोर्ट आई सामने, बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकारा
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे (Revati Mohite Dere) और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण (Prithviraj Chavan) की खंडपीठ ने कहा कि पशु प्रेमी अपने पालतू जानवरों को अपना बच्चा मानते हैं लेकिन असल में वे इंसान नहीं हैं। पीठ ने 20 दिसंबर को सुनाए गए आदेश में कहा, पुलिस ने जो आईपीसी की धारा 279 और 337 लगाई है वह तो मानव जीवन को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित हैं। इस प्रकार, उक्त प्रावधान इस मामले पर लागू नहीं होंगे, क्योकि इसमें पीड़ित इंसान नहीं बल्कि जानवर है।
20 हजार रुपये देने का निर्देश
पीठ ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 20,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साथ ही कहा कि यह रकम उन अधिकारियों के वेतन से वसूली जाये, जिन्होंने इस तरह की प्राथमिकी दर्ज करने व चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी दी।
क्या है मामला?
जानकारी के मुताबिक, घटना के समय डिलीवरी बॉय (याचिकाकर्ता) की उम्र 18 वर्ष थी। शिकायतकर्ता मुंबई के मरीन ड्राइव (Marine Drive) इलाके की सड़कों पर कुछ आवारा कुत्तों को खाना खिला रही थी। इस बीच याचिकाकर्ता वहां से फूड पार्सल की डिलीवरी देने के लिए कहीं जा रहा था, तभी एक कुत्ता अचानक मोटरसाइकिल के सामने आ गया, जिससे वह घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई। इस हादसे में डिलीवरी बॉय भी गिरकर घायल हो गया।
पुलिस की खिंचाई की
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का कुत्ते की मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था, क्योकि कुत्ता सड़क पार कर रहा था और याचिकाकर्ता वहां से अपनी बाइक से फूड पार्सल देने के लिए जा रहा था।