मलयालम अभिनेत्री की बायोपिक
सिल्क की आत्महत्या के बाद नब्बे के दशक के दौरान दक्षिण में शकीला ( Shakeela ) का उदय हुआ। मलयालम में बनी उनकी पोर्न फिल्मों ने कइयों को मालामाल कर दिया। शकीला की इंस्टेंट कामयाबी ने समाज का दोहरा चरित्र भी उजागर किया। एक तरफ लोग उनकी फिल्में देखने टूट रहे थे, दूसरी तरफ एक तबके ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। इस अभिनेत्री पर बनी बायोपिक ‘शकीला’ ऐसे ही मोर्चे के सीन से शुरू होती है। लोग बैनर लेकर सड़कों पर हैं। शकीला की अश्लील फिल्मों पर रोक लगाने की मांग हो रही है। इन फिल्मों को केरल में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बायोपिक की शुरुआत देखकर दूसरी ‘द डर्टी पिक्चर’ की उम्मीद बंधी थी, लेकिन शकीला के सफर को टटोलने के लिए जैसे ही फ्लैशबैक शुरू होता है, यह आम ढर्रे की मसाला फिल्म बन जाती है। ऐसी फिल्म, जो बहुत कुछ कहने के चक्कर में कुछ नहीं कह पाती और ‘द डर्टी पिक्चर’ का कमजोर संस्करण बनकर रह जाती है।
दक्षिण की डब फिल्म जैसी
निर्देशक इंद्रजीत लंकेश ने शकीला की जिंदगी और कॅरियर के उतार-चढ़ाव पर फोकस करने के बजाय कहानी को सिर्फ शकीला (रिचा चड्ढा) ( Richa Chaddha )और फिल्म स्टार सलीम (पंकज त्रिपाठी) ( Pankaj Tripathi ) के टकराव तक सीमित कर दिया। इस तरह का टकराव ‘द डर्टी पिक्चर’ में विद्या बालन और नसीरूद्दीन शाह के बीच भी था, लेकिन इसे फिल्म की बुनियादी लय नहीं बनाया गया था। सिल्क स्मिता और शकीला जैसी अभिनेत्रियों की कामयाबी के पीछे कई दूसरे कारक भी होते हैं। ‘शकीला’ में इनका कोई जिक्र नहीं है। फिल्म हिन्दी में बनी है, लेकिन इसका हुलिया दक्षिण की डब फिल्म जैसा है।
बदनामी से बटोरीं सुर्खियां
शकीला जैसी अभिनेत्री कैसे-कैसे रास्तों से होकर कामयाबी हासिल करती है, इसकी पड़ताल करने के बजाय यह बायोपिक एक गाने में ही शकीला को जूनियर आर्टिस्ट से बड़ी अभिनेत्री में तब्दील कर देती है। हर बड़ा हीरो इसके साथ काम करना चाहता है। कई पैंतरों के बाद भी जब स्टार सलीम के लिए अंगूर खट्टे रहते हैं, तो वह शकीला के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर देता है। उसी के इशारे पर फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता के लिए शकीला को जिम्मेदार ठहराने वाले सड़कों पर उतरते हैं। केरल में कभी यह अभिनेत्री इतनी बदनाम थी कि लड़कियों का नाम शकीला रखने से परहेज किया जाता था।
कमजोर पटकथा, नीरस अदाकारी
रिचा चड्ढा और पंकज त्रिपाठी अच्छे कलाकार हैं, लेकिन कमजोर पटकथा ने उन्हें कुछ खास कर दिखाने का मौका नहीं दिया। शायद इंद्रजीत लंकेश को भी इस कमजोरी का इल्म था। इसलिए उन्होंने रिचा चड्ढा से वही सब करवा दिया, जो कभी दक्षिण की फिल्मों में शकीला किया करती थीं।
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