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मोरेना

जहां बंद हुई अनुदानित शालाएं, उन्हीं जर्जर भवनों में संचालित किए जा रहे शासकीय स्कूल

– दो साल पूर्व शिक्षकों के सेवानिवृत होने पर अर्जुन पुरा और पांच साल पूर्व बाबरी पुरा की बंद हुई अनुदानित शाला, अब उसी जर्जर भवनों में पढ़ाए जा रहे बच्चे
– छतों से टपक रहा बारिश का पानी, हो सकता है हादसा

मोरेनाJul 20, 2024 / 12:52 pm

Ashok Sharma

मुरैना. शिक्षकों के रिटायरमेंट के बाद जिले में बंद हुई अनुदानित शालाओं की जगह शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूल तो शुरू कर दिए हैं लेकिन उनकी बिल्डिंग आज तक नहीं बनी है मजबूरन बच्चे जर्जर भवनों में पढ़ रहे हैं जिससे हादसे की आशंका बनी हुई है।
जिले में ऐसी 80 अनुदानित शालाएं थी जिनमें पदस्थ शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने पर स्कूल बंद हो गए थे। शिक्षा विभाग ने उन स्थनों पर सरकारी स्कूल स्वीकृत कर दिया और शिक्षकों की भी व्यवस्था कर दी लेकिन बिल्डिंग की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी है। आज से करीब पांच दशक पूर्व जिले में संचालित करीब 80 अनुदानित शालाओं में धीरे- धीरे शिक्षक सेवानिवृत्त होने पर संस्थाएं बंद होती गई। इन स्कूलों का संचालन स्कूल प्रबंधन समितियों द्वारा किया जा रहा था। चंूकि समिति को नए शिक्षक नियुक्ति का अधिकार नहीं था इसी के चलते स्कूल बंद होते गए। उन संस्थाओं की कुछ के बच्चे नजदीकी सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर दिया गया और कुछ स्थानों पर नजदीक में सरकारी स्कूल न होने पर उन्हीं अनुदानित शालाओं के जर्जर भवनों में नए सिरे से स्कूल शुरू किया गया, उनमें शिक्षकों की व्यवस्था की गई लेकिन उनके भवन आज तक स्वीकृत नहीं हो सके हैं इसलिए मजबूरन बच्चे जर्जर भवनों में पढऩे को मजबूर हैं।
1.पानी टपकता है अर्जुन पुरा स्कूल भवन की छत से
जौरा विकास खंड के अर्जुन पुरा में दो साल पूर्व अनुदानित शाला बंद हुई थी। उसके नजदीक कोई सरकारी स्कूल नहीं था इसलिए विभाग ने जिस बिल्डिंग में अनुदानित संचालित थी, उसी बिल्डिंग में सरकारी स्कूल शुरू कर दिया। एक शिक्षक को भी तैनात कर दिया। लेकिन आज स्थिति यह है कि भवन पूरी तरह जर्जर हालत में हैं उसकी छत पर पड़ी पटियों के बीच गैप हो गया है। बारिश के दौरान छत से पानी टपकता है। यहां जल स्रोत भी नहीं हैं। पानी के लिए करीब एक किमी दूर बच्चों को जाना पड़ता है।
  1. एक दशक बाद भी स्कूल भवन नहीं बना बाबड़ी स्कूल का
    गुढ़ाचंबल जन शिक्षा केन्द्र के अंतर्गत बाबड़ी गांव में एक दशक पूर्व अनुदानित शाला बंद हो गई थी। शिक्षा विभाग ने उसी पुरानी बिल्डिंग में शासकीय प्राइमरी स्कूल शुरू कर दिया और दो शिक्षकों को भी पदस्थ किया है लेकिन भवन आज तक नहीं बना हैं। स्थिति यह है कि स्कूल के लिए तीन कमरे थे, तीनों पूरी तरह जर्जर होने पर बच्चों को बाहर बैठाकर पढ़ाया जाता है। बारिश के चलते स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है। यहां पानी के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं हैं। यहां बच्चों को नियमित मध्यान्ह भोजन भी नही मिलता।
    कथन
  • जिले में जहां अनुदानित शालाएं बंद हुई हैं, वहां स्कूल भवन के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है लेकिन राशि नहीं मिलने पर भवन का निर्माण नहीं हो सका है। बीआरसी व इंजीनियर्स को पत्र लिखा है कि जहां भी जर्जर स्कूल भवन हैं, उनमें कक्षाएं नहीं लगाई जाएं।
    हरीश तिवारी, डीपीसी, जिला शिक्षा केन्द्र

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