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पति की मौत के 68 साल बाद भी ‘पेंशन’ की लड़ाई लड़ रही है 90 साल की बुजुर्ग महिला, किसी फिल्म से कम नहीं ये कहानी

90 साल की बुजुर्ग महिला कमला देवी अपने वनरक्षक पति की मौत के 68 साल बाद भी पेंशन के लिए लड़ रही हैं। महिला की दुर्दशा देखकर सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहें हैं।

मोरेनाApr 23, 2024 / 03:47 pm

Faiz

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले से दिल को झकझोर कर रख देने वाला मामला सामने आया है। ये मामला किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। बता दें कि, यहां रहने वाली करीब 90 साल की बुजुर्ग महिला कमला देवी अपने वनरक्षक पति की मौत के 68 साल बाद भी पेंशन के लिए लड़ रही हैं। उनकी दुर्दशा को देखकर सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहें हैं।
आपको बता दें कि बुजुर्ग महिला कमला देवी के पति चौखेलाल वनरक्षक थे। साल 1956 में अपनी ड्यूटी के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई थी। पिता की मौत के समय उनका बेटा सिर्फ 11 महीने का था। कमला देवी को उनके भाई अपने गांव तुड़ीला ले आए, जहां वो अपना बाकी का जीवन बिता रही हैं। आज उनका बेटा ही 68 साल का हो चुका है और मां पेंशन की लड़ाई लड़ते-लड़ते 88 साल की हो गई हैं। लेकिन, आज भी उनकी निगाहें सरकार से न्याय की आस को तरस रही हैं।
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पेंशन के बारे में नहीं थी जानकारी

हैरानी की बात तो ये है कि, जबकि कमला देवी के पति चौखेलाल की मृत्यु ड्यूटी के दौरान हुई थी। बावजूद इसके वन विभाग द्वारा उन्हें ये तक नहीं बताया गया कि सरकारी नियम के अनुसार, सरकारी नौकरी करने वाले पति की मृत्यु के बाद उनकी विधवा को पेंशन दी जाती है। कमला देवी को इस बात की जानकारी साल 1996 में लगी, जिसके बाद उन्होंने विभाग से अपने हक की दरकार की, लेकिन विभाग के उदासीन रवैय्ये के चलते उन्हें अपने इस अधिकार के लिए कानूनी लड़ाई शुरू करनी पड़ी।
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कब खत्म होगी हक की लड़ाई

कमला देवी के बेटे बाबूलाल का कहना है कि 1947 में माता पिता की शादी हुई। 1955 में मेरा जन्म हुआ और एक साल बाद ही पिता का निधन हो गया। मामा हमें पहारगढ़ से टुड़ीला ले आए। ये उनका हमारे प्रति प्रेम था, लेकिन मामा के हालात भी इतने अच्छे नहीं थे कि वो अपने परिवार के साथ साथ हमारा भरण पोषण भी पर्याप्त कर सकें। हमने अपने बचपन के कई दिन ऐसे बिताए, जिसमें पड़ोसी के घर पकवान बनते और हम बासी रोटी खाकर गुजारा कर लिया करते। कमला देवी की लड़ाई पेंशन के साथ अनुकम्पा नियुक्ति को लेकर भी है, जिसके लिए वो अपने जीवन का बड़ा दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। अब देखना ये कि कबतक खत्म होगी।

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