
Daylight saving time : घड़ी को एक घंटा आगे-पीछे क्यों करते हैं कई देश
नई दिल्ली. अमरीका, कनाडा और क्यूबा सहित कुछ देशों ने 10 मार्च से डेलाइट सेविंग टाइम शुरू होने पर घडिय़ों को एक घंटा आगे करने की तैयारी कर रहे हैं। इसका मकसद दिन के उजाले का अधिकतम उपयोग करना है। यहां जानते हैं क्या है डेलाइट सेविंग टाइम और इसकी प्रक्रिया क्या है?
दिन रात की लंबाई में अंतर
पृथ्वी की धुरी झुकी होने के कारण धु्रवों पर दिन और रात के समय का अंतर ज्यादा होता है। यही वजह है कि डीएसटी की जरूरत भूमध्य रेखा और कर्क एवं मकर रेखा के आसपास के देशों को नहीं पड़ती है। धु्रव के नजदीकी क्षेत्रों में सर्दियों में दिन छोटे, रात बड़ी और गर्मियों में दिन बड़े रातें छोटी होती हैं।
डे लाइट सेविंग टाइम
डेलाइट सेविंग टाइम (डीएसटी) किसी देश के समय को एक घंटा आगे या पीछे करने की प्रक्रिया होती है, जो हर छह माह में एक बार की जाती है। गर्मी में घड़ी की सुई को एक घंटा आगे कर दिया जाता है, जिससे लोग दिन के उजाले का अधिक से अधिक उपयोग कर सकें। इससे शाम लंबी हो जाती हैं और ऊर्जा की खपत भी कम होती है। सर्दियों में फिर से घडिय़ों को वापस एक घंटा पीछे कर दिया जाता है।
क्या पूरे अमरीका में यह मान्य है
नहीं, हवाई, एरिजनों, नवाजो इसका पालन नहीं करते। इसके अलावा प्यूर्टोरिको, उत्तरी मारियाना, समोआ सहित कुछ द्वीप समूह भी डेलाइट सेविंग टाइम का पालन करते हैं।
कब हुई शुुरुआत
माना जाता है 1908 में पहली बार कनाडा में डीएसटी को अपनाया गया। यूरोप में पहली बार 1916 में जर्मनी और ऑस्ट्रिया में यह शुरू हुआ। जबकि 1918 में अमरीका ने इसका अनुसरण किया। अभी दुनिया के 70 देशों में डीएसटी लागू है।
बॉडी क्लॉक होती है प्रभावित
ऑक्सफोर्ड विवि के प्रोफेसर रसल फोस्टर कहते हैं, सर्केडियन रिदम यानी बॉडी क्लॉक प्रभावित होती है और लोगों की दिनचर्या बदल जाती है। नींद एक घंटे कम हो जाती है। इससे नींद में बाधा, स्ट्रोक, बीपी का जोखिम बढ़ता है। तनाव, अवसाद और अल्जाइमर जैसी मुश्किलें हो सकती हैं।
Published on:
12 Mar 2024 12:46 am
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