आगे बढऩे से पहले आपको बता दें कि यह किस्सा मनमोहन सिंह की पहली सरकार यानी यूपीए-1 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रहे जेएन दीक्षित ने अपनी किताब इंडिया-पाकिस्तान इन वॉर एंड पीस में इस प्रस्ताव की विस्तृत चर्चा की है।
जेएन दीक्षित ने अपनी इस किताब में जापान की राजधानी तोक्यो में तैनात पाकिस्तानी राजदूत मोहम्मद अली के हवाले से लिखा है कि अय्यूब के प्रस्ताव लेकर भारत पहुंचने से करीब एक महीने पहले यानी मार्च में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत में शरण लेने पहुंचे थे।
क्या था प्रस्ताव में
चीन की विस्तारवादी नीति से भारत को भी आगाह करते हुए अय्यूब खान ने जो प्रस्ताव पेश किया, उसके मुताबिक भारत और चीन पाकिस्तान को मिलकर संयुक्त रक्षा समझौते के तहत चीन की विस्तारवादी नीति को मुकाबला कर सकते हैं। खान ने कहा था कि वह अपने क्षेत्र में चीन की घुसपैठ का पूरी ताकत से मुकाबला करेंगे। भारत को भी अपने क्षेत्र के लिए ऐसी ही कार्रवाई करनी चाहिए।
चीन की विस्तारवादी नीति से भारत को भी आगाह करते हुए अय्यूब खान ने जो प्रस्ताव पेश किया, उसके मुताबिक भारत और चीन पाकिस्तान को मिलकर संयुक्त रक्षा समझौते के तहत चीन की विस्तारवादी नीति को मुकाबला कर सकते हैं। खान ने कहा था कि वह अपने क्षेत्र में चीन की घुसपैठ का पूरी ताकत से मुकाबला करेंगे। भारत को भी अपने क्षेत्र के लिए ऐसी ही कार्रवाई करनी चाहिए।
नेहरू ने प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाया
बहरहाल, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अय्यूब खान के प्रस्ताव को नकार दिया था। तब नेहरू ने संसद में कहा, हम पाकिस्तान के साथ एक जैसी रक्षा नीति नहीं चाहते। ऐसा करना पाकिस्तान के साथ सैन्य गठबंधन करने जैसा होगा।
बहरहाल, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अय्यूब खान के प्रस्ताव को नकार दिया था। तब नेहरू ने संसद में कहा, हम पाकिस्तान के साथ एक जैसी रक्षा नीति नहीं चाहते। ऐसा करना पाकिस्तान के साथ सैन्य गठबंधन करने जैसा होगा।
नेहरू की आशंका बाद में सच साबित हुई
हालांकि, जेएन दीक्षित के मुताबिक, जवाहरलाल नेहरू अय्यूब के इस प्रस्ताव को एक और चश्मे से देख रहे थे और वह था जम्मू-कश्मीर पर सुलह-सफाई का एक मजबूत प्रयास। शायद अय्यूब खान के प्रस्ताव को ठुकराने की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। दिलचस्प यह है कि नेहरू की यह सोच बाद में सच साबित हुई। असल में अय्यूब खान ने उसी साल सितंबर में इस बात को स्वीकार किया कि जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े मसले को सुलझाने के लिए उन्होंने भारत के सामने यह प्रस्ताव रखा था।
हालांकि, जेएन दीक्षित के मुताबिक, जवाहरलाल नेहरू अय्यूब के इस प्रस्ताव को एक और चश्मे से देख रहे थे और वह था जम्मू-कश्मीर पर सुलह-सफाई का एक मजबूत प्रयास। शायद अय्यूब खान के प्रस्ताव को ठुकराने की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। दिलचस्प यह है कि नेहरू की यह सोच बाद में सच साबित हुई। असल में अय्यूब खान ने उसी साल सितंबर में इस बात को स्वीकार किया कि जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े मसले को सुलझाने के लिए उन्होंने भारत के सामने यह प्रस्ताव रखा था।
सेना प्रमुख से मतभेद तो वजह नहीं थी!
अय्यूब खान को नेहरू की ना का एक पहलू और भी माना जाता है। असल में भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर करीबी जानकारी रखने वाले कुछ विशेषज्ञों की मानें तो नेहरू के तब तत्कालीन सैन्य प्रमुख से अच्छे संबंध नहीं थे। कुछ बातों को लेकर दोनों के बीच मतभेद थे और इसलिए भी नेहरू ने पाकिस्तान का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
अय्यूब खान को नेहरू की ना का एक पहलू और भी माना जाता है। असल में भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर करीबी जानकारी रखने वाले कुछ विशेषज्ञों की मानें तो नेहरू के तब तत्कालीन सैन्य प्रमुख से अच्छे संबंध नहीं थे। कुछ बातों को लेकर दोनों के बीच मतभेद थे और इसलिए भी नेहरू ने पाकिस्तान का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
यह किस्सा इस समय क्यों?
यह किस्सा इस समय इसलिए भी मौजूं है, क्योंकि गत 2 मार्च को चीन और पाकिस्तान करीब सात दशक बाद अपनी दोस्ती की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। दोनों देश एकदूसरे के साथ मजबूती से खड़े दिखाई देते हैं। यही नहीं, दोनों देशों के लिए ऑल वेदर फेंरड्स और आयरन ब्रदर्स जैसी मिसल भी दी जाती है। वहीं, इन दोनों देश के लिए भारत दुश्मन बना हुआ है।
यह किस्सा इस समय इसलिए भी मौजूं है, क्योंकि गत 2 मार्च को चीन और पाकिस्तान करीब सात दशक बाद अपनी दोस्ती की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। दोनों देश एकदूसरे के साथ मजबूती से खड़े दिखाई देते हैं। यही नहीं, दोनों देशों के लिए ऑल वेदर फेंरड्स और आयरन ब्रदर्स जैसी मिसल भी दी जाती है। वहीं, इन दोनों देश के लिए भारत दुश्मन बना हुआ है।